लघुकथा

हौसला बुलंदी

गजनवी के 17 हमले झेलकर भी खड़ा है सोमनाथ मंदिर. यह सोमनाथ मंदिर की हौसला बुलंदी है.
‘चुनाव वीर’ चायवाले का 22 बार शिकस्त झेलने के बावजूद ‘चायवाले’ का नहीं टूटा हौसला. वे फिर मध्य प्रदेश से चुनावी रण की तैयारी में जुट गए हैं, यह ‘चुनाव वीर’ की हौसला बुलंदी है. फिर हम क्यों न इस हौसला बुलंदी का हिस्सा बनते!
”आपको सब लोग ‘चुनाव वीर’ कहते हैं, आपका नाम क्या है?” हमारे हाथ में माइक देखकर ‘चुनाव वीर’ समझ गए थे कि हम उनसे साक्षात्कार लेने आए हैं और वे गल्ले पर किसी को खड़ा कर चाय पीने आए ग्राहकों के बीच में से जगह बनाकर हमारे पास आ गए थे.
”जी मेरा नाम आनंद सिंह कुशवाहा है.” ‘चुनाव वीर’ का कहना था.
”वाह! आप तो नाम के अनुरूप आनंदित लग रहे हैं. आपको ‘चुनाव वीर’ क्यों कहा जाता है?” हमारी सहज जिज्ञासा थी.
”ऐसा है जी, कहने वाले कुछ भी कह सकते हैं, पर इस पदवी में सच्चाई भी है. मैं 23वीं बार ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतर रहा हूं. हैरान करने वाली बात तो यह है कि मुझे 22 बार शिकस्त मिल चुकी है, लेकिन आर्थिक नुकसान के बावजूद मेरा हौसला नहीं टूटा है. चुनाव में जीत के लिए मेरी उम्मीद आज भी बरकरार है.”
”ऐसा लगता है चुनाव में हिस्सा लेना आपका शौक है?”
”जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. मैं 49 वर्ष का हूं और 1994 से हर चुनाव में किस्मत आजमाता रहा हूं. मेरे लिए यह एक अद्भुत आकर्षण है. लोगों के अलग-अलग शौक होते हैं और यह मेरा शौक है. मैं लोकतंत्र के इस महापर्व का हिस्सा बनना चाहता हूं.” आनंद जी ने कहना जारी रखा- ”मैं नगरपालिका से लेकर, विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक सभी का हिस्सा रह चुका हूं. यहां तक कि मैंने तो राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी प्रयास किया था. मेरा मानना है कि चुनाव एक गंभीर मुद्दा है, जिसमें आपको जरूर शामिल होना चाहिए.”
”आपके परिवार वाले सहमत हो जाते हैं?” हमारा पूछना स्वाभाविक ही था.
”जी हां, मेरी दृढ़ता देख अब परिवार वाले भी मुझे समझाना बंद कर चुके हैं.”
”आप किसी पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं?” हमारा अगला प्रश्न था.
”अभी मेरा टिकट फाइनल नहीं किया गया, लेकिन उम्मीद है कि बीएसपी से मुझे टिकट मिलेगा. इसलिए मैंने इलेक्शन कमिशन को दिए अपने ऐफिडेविट में कहा कि मैं बीएसपी उम्मीदवार हूं. यदि मुझे टिकट नहीं मिलता तो मैं निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरूंगा. मुझे उम्मीद है कि इस बार मैं जीत हासिल करूंगा.”
”चलिए, आपकी हौसला बुलंदी को नमन करते हुए आपकी जीत के लिए हमारी हार्दिक शुभकामनाएं प्रस्तुत हैं.” कहकर हमने उनसे विदा ली.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “हौसला बुलंदी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हौसला बुलंदी लघु कथा पसंद आई लीला बहन . २२स वार शिकस्त होने के बावजूद ,फिर डट कर मैदान में आ रहे हैं चाय वाला, कमाल का जज्बा है . गजनवी के १७ हमलों से एक बात दिमाग में आई कि सभी हमलावरों ने भारत को लूटा , अंग्रेजों ने तो भारत को निचोड़ कर ही रख दिया , और आज फिर भी भारत की जय जयकार दुनियन में हो रही है . यह भी तो भारतीओं की हौसला बुलंदी ही है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सभी हमलावरों ने भारत को लूटा, अंग्रेजों ने तो भारत को निचोड़ कर ही रख दिया और आज फिर भी भारत की जय-जयकार दुनिया में हो रही है, यह भी तो भारतीयों की हौसला बुलंदी ही है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    गजनवी के 17 हमले झेलकर भी खड़ा है सोमनाथ मंदिर
    महमूद गजनवी यमीनी वंश के तुर्क सरदार और गजनी के शासक सबुक्तगीन का बेटा था. सुल्तान महमूद का जन्म 971 में हुआ था. उसने 27 साल की उम्र में ही गद्दी संभाली थी. वह बचपन से भारती की दौलत के बारे में सुनता आया था. उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया. वह भारत की संपत्ति लूटकर गजनी ले जाना चाहता था.

    22 बार शिकस्त झेलने के बावजूद ‘चायवाले’ का नहीं टूटा हौसला, फिर चुनावी रण की तैयारी

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