गज़ल
किस्मत से न था कोई गिला सालों पहले
इश्क न जाने क्यों मुझे हुआ सालों पहले
मुसलसल चोटों ने पत्थर सा बन गया हूँ मैं
दर्द मुझको हुआ करता था सालों पहले
मैं मर गया वहीं जब छोड़कर मुझे तुमने
हाथ थामा था किसी गैर का सालों पहले
एक तमगे की तरह दिल पे सजा रखा है
ज़ख्म तूने जो था मुझे दिया सालों पहले
भरोसा जिसपे किया खुद से ज्यादा मैंने वो
बदलते वक्त सा बदल गया सालों पहले
— भरत मल्होत्रा