ग़ज़ल-वृंदावन-बरसाना भी है
उससे आँख मिलाना भी है.
सबसे आँख बचाना भी है.
जिसको दोस्त समझते हैं सब,
वो मेरा दीवाना भी है.
आज छिपा लूँगा मैं उसको,
इस दिल में तहखाना भी है.
सागर सी गहरी आँखों में,
लगता इक मैखाना भी है.
है संबंध नया पर लगता,
रिश्ता कोई पुराना भी है.
कुछ तो जान लिया है उसने,
कुछ उसको समझाना भी है.
दिल में गोकुल-मथुरा है तो,
वृंदावन-बरसाना भी है.
— डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674