जिन्दगी में ये किस्मत भी
क्या-क्या गुल खिला देती है,
पल-पल में खुशियों का गुलदस्ता
तो•••
पल-पल में दुःखों का पहाड़
खड़ा कर देती है।
न जाने कब
किसके जीवन को
खुशियों से भर दे,
और•••
कब किसको दुःख-दर्द के
कुएँ में धकेल दे।
ऐ इन्सान!
मत कर तू इतना अभिमान,
कि•••
कहीं किस्मत की मार खाकर
पलभर में ही मिट न जाय
तेरा यह झूठा मान व सम्मान।
करना होगा अब स्वीकार
इस सच्चाई को
कि यह बड़पन व सम्मान
तेरा-मेरा नहीं है,
अपितु•••
किस्मत का दिया हुआ
अनमोल तोफा ही सही है।
न जाने कब तक साथ रहे,
और•••
कब साथ छोड़ कर मझधार में
खड़ा कर दे।
सच्च ही कहा गया है कि•••
हे मानव!
यह कभी न भूलना
वक्त से बढ़कर कुछ भी नहीं है,
वक्त ही इस माया जग में
इस उतार-चढ़ाव की अहम् कड़ी है।
करते ईश से हम सतत् प्रार्थना,
कि•••
न हो अभिमान तृणमात्र भी
हो सफल हमारी यह कामना।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट “स्नेहिल”