कहानी

कहानी- नन्ही परी की जीत 

रात के बारह बज रहे थे और वह नन्ही परी से जी खोलकर बतिया रही थी। सुन आज तू पूरे चार महीने की हो गई है। तुझे मैंने कैसे बचाया है। यह बात तो तू भी जान गई होगी। तेरे पापा और तेरी दादी तो बुरी तरह तेरे पीछे पड़े थे तुझे मारने के लिए। कोई कसर न छोड़ी थी उन्होंने। मैंने डॉक्टर सरला से बातचीत कर ली थी कि मैडम टेस्ट करते समय आप इन लोगों को लड़का है ऐसा बता देना। डॉक्टर सरला ने घर के सभी लोगों से कहा -पहले बच्चा उलटा था। इस कारण ठीक से पता नहीं चल सका था। डॉक्टर के लड़का कहते ही पूरे घर में खुशियां मनाई जाने लगी। सुन रही है न ! मेरा और तेरा बहुत ध्यान रखा जाने लगा। सुन लाडो अब मुझे अंदर ही अंदर डर भी बहुत लग रहा है। तुझे मैं चार महीने और बचा लूंगी। तेरे जन्म लेते ही इन्हें पता चल जायेगा और तब अगर इन दुष्टों ने तुझे मार दिया। यह सोच कर ही मेरी आत्मा कांप उठती है। लाडो तू सुन रही है न! तू ही कोई रास्ता बता। मैं ऐसा क्या करूँ कि तू बच जाए। तभी पेट पर नन्हे नन्हे पैरों का आघात होता है। मानो नन्ही परी कुछ कह रही हो। जानकी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। चल लाडो अभी तो चैन से सोते हैं। तुझे चार माह का जन्मदिन मुबारक हो। तू हमेशा स्वस्थ रहकर चिरायु होना। तेरी माँ का आशीर्वाद सदैव तेरे साथ रहेगा। तू परिवार, समाज व देश का नाम रोशन करना। पेट पर हाथ फेरते हुए तूझे ढेर सारा प्यार व आशीर्वाद। इसी तरह बातें करते करते जानकी अपनी नन्ही परी के साथ सो गई।
सुबह उठते हुए उसकी सास उसके आगे पीछे चलकर उसकी सेवा करने लगती है। तीन बेटियों के बाद इस बार तो मेरी बहू इस घर का वारिस देने वाली है। जानकी चुपचाप अपनी तीनों बेटियों की देखभाल करती रहती। उन्हें प्यार से तैयार करके स्कूल भेजती। स्कूल से आते ही उन्हें गर्म-गर्म भोजन कराती। उन्हें स्वयं पढ़ाती। सास ताना देती इन पर इतना खर्चा करके व इतना प्यार उड़ेलकर क्या मिलेगा। शादी करके अपने ससुराल चली जायेंगी। अपनी कोख के वारिस पर ध्यान दे। उसे अगर कोई तकलीफ हुई तो तू इस घर में न रह सकेगी। उसकी खातिर ही तेरा इतना लाड़ हो रहा है। अबकी तो डॉक्टर ने भी कह दिया है कि इस घर का वारिस तेरी कोख में पल रहा है। इसका ठीक से ध्यान रख। जानकी तुझे इन छोरियों के लिए ज्यादा भागदौड़ करने की जरूरत नहीं है। यह तो भूखी प्यासी रहकर भी बड़ी हो जायेंगी। यह तो बड़ी लम्बी उम्र लिखवाकर लायीं हैं। तूझे इनकी चिंता करने की कतई जरूरत नहीं है। इन्हें पढ़ लिखकर कौन सा कलेक्टर बनना है। बस तू तो मेरे पोते का ध्यान रख। जानकी मुँह बंद किए हुए अपनी सास की कड़वी बातों को सुनती रहती थी।
जानकी को ऐसा लगा मानो पलक झपकते ही आठवां महीना भी समाप्त हो गया है। अब जानकी को अपनी नन्ही परी की चिंता सताने लगी।
रोज की तरह जब जानकी अपनी नन्ही परी को प्यार करते हुए उससे बातें कर रही थी। तभी उसे ऐसा लगा मानो परी कुछ बोल रही है। माँ तू डर मत। अब मेरे बाहर आने का समय आ गया है। तू उसी डॉक्टर के पास चले जा। जिसने तेरा साथ देकर मुझे बचाया था। वह डॉक्टर तेरी रक्षा जरूर करेगी। फिर क्या था सुबह चार बजे, घर के लोगों के उठने से पहले ही जानकी, अपनी सभी बेटियों को प्यार करके डॉक्टर के घर की तरफ चल दी। डॉक्टर का घर और अस्पताल एक साथ ही था। डॉक्टर उस समय एक महिला की डिलेवरी में व्यस्त थी।
जानकी बाहर बैंच पर बैठ गई।
प्रसूति कक्ष से फ्री होकर जब डॉक्टर सरला बाहर आईं, तो उन्होंने बैंच पर जानकी को बैठे देखा। तो आश्चर्य चकित हो गई।
जानकी सब ठीक तो है न ? इतनी सुबह-सुबह तुम यहाँ, दर्द तो नहीं है ? जानकी ने डॉक्टर सरला को नमस्कार करते हुए कहा- मैडम दर्द तो नहीं है। पर आज बेचैनी कुछ ज्यादा हो रही थी। अच्छा नहीं लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि नन्ही परी आने वाली है। आज आठ महीने पच्चीस दिन ही हुए हैं। जानकी बोली मैडम आपको तो पता ही है। जैसे ही मेरी सास और पति को पता चलेगा कि हमने उनसे झूठ कहा था। तो उसी क्षण मेरी सास मुझे और मेरी परी को जिन्दा जला देगी। मैडम आप तो जानती हो वह कितनी कठोर है। मेरी परी भी आज कुछ डर सी रही थी, इसलिए मैं आपके पास आ गई। सुबह होते ही वे लोग मुझे ढूंढते हुए यहां आ जाएंगे। मैडम अब आप ही कोई रास्ता बताओ।
डॉक्टर सरला ने कहा- जानकी तुम डरो मत। अंदर आओ तुम्हारा चैकअप कर लेती हूँ। जानकी का चैकअप करते ही डॉक्टर आश्चर्य चकित हो गई। बच्चा बिल्कुल नीचे आ चुका था। पर जानकी को कोई दर्द नहीं था। डॉक्टर ने जानकी से कहा-अभी एक घंटे के अंदर तुम्हारी परी बाहर आने वाली है। तुम चिंता मत करो उसे मैं पालूगीं और तुम्हारे घर वालों को मैं बता दूंगी कि तुम्हारे अर्धविकसित मरी हुई बेटी हुई थी। वह लोग तो उसे देखेंगे भी नहीं। तुम घर चली जाना तुम्हारी अमानत मेरे पास पलेगी। तुम जब जी चाहे उससे आकर मिलती रहना। डॉक्टर की बातों से जानकी को थोड़ी तसल्ली हुई।
डॉक्टर जानकी को लेबर रूम में ले गई। कुछ समय पश्चात ही बिना किसी तकलीफ के जानकी ने अपनी परी को जन्म दिया। शायद परी जानती थी कि माँ के पास पहले से ही बहुत दर्द और तकलीफें हैं इसलिए परी ने माँ को और दर्द नहीं दिया।जानकी नन्ही परी को पाकर बहुत खुश थी। डॉक्टर सरला उसे पालेगीं इस बात से वह और भी खुश और निश्चिंत हो गई थी। परी बहुत प्यारी थी। जानकी ने उसे गोद में लेकर उससे ढेर सारी बातें की। फिर डॉक्टर सरला ने नर्स के हाथ में देकर परी को दूसरे कक्ष में रख दिया।
डॉक्टर सरला बहुत ही अच्छे स्वाभाव की महिला थीं। उम्र लगभग साठ के आस पास होगी। उन्होंने शादी नहीं की थी। इसलिए हर बच्चे को अपने बच्चे जैसा स्नेह और प्रेम देती थीं। वह परी को पाकर बहुत खुश थीं। अब तक वह हजारों बच्चों की डिलेवरी करवा चुकी होगीं। पर इतनी खुशी उन्हें कभी नहीं मिली जितनी परी के जन्म से मिली थी। ऐसा लग रहा था मानो वह स्वयं माँ बन गईं हो।
इधर सुबह होते ही घर में जानकी को न देखकर सब परेशान हो गए। जानकी का पति बिजनेस के काम से दिल्ली गया हुआ था। उसे फोन किया गया। जानकी की सास कलावती और देवर विनय जानकी को ढूंढते हुए दोपहर के समय डॉक्टर सरला के अस्पताल में पहुंचे। डॉक्टर सरला ने बताया कि जानकी को रात से ही बहुत अधिक तकलीफ हो रही थी। आप सब गहरी नींद में सो रहे थे। इसने आप लोगों को नींद से उठाना उचित न समझा इसलिए वह आप लोगों को बिना बताये ही यहां आ गई। सास बहुत खुश हो रही थी। वह डॉक्टर से बोली मेरा पोता कैसा है ? डॉक्टर सरला ने कहा-मुझे आपको बड़े दुख के साथ बताना पड़ रहा है कि जानकी ने एक अर्ध विकसित बच्चे को जन्म दिया था। जिसको देखकर पता ही नहीं चल रहा था कि वह लड़का है या लड़की। कुछ अंग लड़की जैसे थे। जन्म के कुछ क्षण बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। जानकी बहुत कमजोर है उसे चार पांच दिन अस्पताल में ही रहना होगा। आप लोग उस बच्ची को ले जाए और उसका क्रियाकर्म कर दें। जानकी की सास गुस्से से बोली हम उस बच्ची का क्या करेंगे। आप अपने अस्पताल के शवगृह में ही उसका दाह संस्कार करवा दीजिए। यह कहकर जानकी की सास गुस्से में अस्पताल से बाहर आ गई। घर जाकर उसने अपने बेटे को फोन करके सब बात बताई और कहने लगी तेरी पत्नी जानकी मनहूस है, कुलक्षणी है। अब उसे घर लाने की आवश्यकता नहीं है। तू उसे त्याग कर दूसरा ब्याह कर ले।
दो दिन बाद जानकी का पति संजय घर वापस आ गया। उधर जानकी चार दिन से अस्पताल में ही थी। घर के किसी भी सदस्य ने उसकी खोज खबर नहीं ली। एक सप्ताह बाद जानकी नन्ही परी को डॉक्टर सरला के पास छोड़कर वापस घर आई ,तो घर के सभी लोगों का व्यवहार उसके प्रति अच्छा नहीं था। सभी लोग उसे बुरा-भला बोल रहे थे। सिर्फ उसकी तीनों बेटियां रीता, मीता, गीता माँ को पाकर बहुत खुश थी। जानकी ने बड़े प्यार से अपनी तीनों बेटियों को गले लगाया।
कुछ समय बाद जानकी की सास ने जानकी से कहा- तू तो कुलक्षणी है एक बेटा न जन सकी। मैं अपने बेटे का दूसरा ब्याह कर रही हूँ। तू जहां जाना चाहे जा सकती है। जानकी ने बड़े विनम्र भाव से कहा- आप इनका दूसरा ब्याह करवा दीजिए लेकिन मैं अपनी तीनों बेटियों के साथ इसी घर में रहूंगी।
कुछ समय बाद संजय का दिल्ली की एक लड़की रेखा से दूसरा ब्याह हो गया। उधर परी एक साल की हो चुकी थी। जानकी हर दिन किसी न किसी बहाने से परी को मिल आती थी। देखते ही देखते परी ने स्कूल जाना भी शुरू कर दिया। डॉक्टर सरला उसको बड़े प्यार से पाल रहीं थीं। परी उन्हें बड़ी माँ बोलती थी।
इधर संजय की दूसरी पत्नी रेखा ने एक वर्ष बाद एक कन्या को जन्म दिया। अब तो जानकी की सास कलावती के क्रोध और दुख की सीमा न थी। वह परेशान होकर बीमार रहने लगी।
समय पंख लगा कर उड़ रहा था। डॉक्टर सरला ने परी को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन करवा दिया था। परी पढ़ने में बहुत ही होशियार थी। देखते ही देखते नन्ही परी डॉक्टर परीधि बन चुकी थी। जानकी को वह आंटी बोलती थी। अब कलावती भी अस्सी वर्ष की हो चुकी थी लेकिन पोते की चाह अभी भी उसके मन में गहराई हुई थी। अधिक चिंतित रहने के कारण एक दिन कलावती को लकवा मार गया। उसके हाथ पैर टेड़े हो गए और आवाज भी चली गई। घर के सभी लोग परेशान थे। जब संजय सात बरस का था। तभी एक दुर्घटना में संजय के पिता की मृत्यु हो चुकी थी। कलावती ने ही अपने दोनों बेटे संजय और विनय को पाल- पोसकर बड़ा किया था। कलावती पढ़ी-लिखी नहीं थी। वह तीन चार घरों में खाना बनाने का काम करती थी। उसी आमदनी से उसने दोनों बेटों को खूब पढ़ाया था। इस समय संजय और विनय दोनों ही सरकारी नौकरी में थे। पैसे की कोई कमी न थी। दोनों बेटे अपनी माँ का बहुत सम्मान करते थे। विनय की शादी अभी नहीं हुई थी। दोनों बेटों ने माँ के इलाज में पानी की तरह पैसा बहा दिया लेकिन कोई फर्क न पड़ा। कलावती अब बिस्तर पर मोहताज सी पड़ी रहती थी। वह बोल भी नहीं सकती थी। संजय की दूसरी पत्नी रेखा तो कलावती के कमरे में झांकती भी न थी। वह नौकरी भी करती थी इसलिए सुबह जाकर शाम को घर वापस आती थी। पर जानकी अपनी सास की दिन रात दिल से सेवा करती थी।
डॉक्टर परीधि अब प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन बन चुकी थी। दूर दूर से लोग डॉक्टर परीधि के पास इलाज के लिए आते थे। डॉक्टर सरला भी अब वृद्ध हो चुकी थीं। परी उनका बहुत ध्यान रखती थी।
इधर जानकी की तीनों बेटियों का विवाह हो चुका था। वे सब अपने ससुराल में सुखी थी। डॉक्टर परीधि ने भी अपने साथ पढ़े हुए डॉक्टर रीतेश से विवाह कर लिया था।
एक दिन जानकी ने परी को कलावती की बीमारी की बात बताई और घर आकर देखने के लिए कहा। जब परीधि ने जानकी के घर आकर कलावती को चैक करने के लिए उनका हाथ पकड़ा तो मानो एक चमत्कार सा हो गया। कलावती के हाथ में एक कंपन सा हुआ और बेजान हाथ में जान आ गई। अब डॉक्टर परीधि प्रति दिन कलावती के हाथ पैरों की एक्सरसाइज करवाती थी। दवाई भी चल रही थी। आवाज की थैरेपी भी चल रही थी। दो महीने के अंदर कलावती कुछ कुछ बोलने लगी थी। हाथ पैर भी काम करने लगे थे। कलावती और संजय डॉक्टर परीधि की सेवा से बहुत खुश थे। कुछ समय बाद जब कलावती पूरी तरह ठीक हो गई तो डॉक्टर परीधि के पैर छूकर कहने लगी। बेटा तुमने मुझे दुबारा जीवन दिया है। तुम इंसान के रूप में भगवान हो। जानकी दूर खड़ी सब बात सुन और देख रही थी। वह बीच में बोल पड़ी। हां माँ, यह भगवान ही है। यह तुम्हारी चौथी पोती परी है। जिसे मैंने आप सब छिपाकर रखा था क्योंकि आप सब लोगों पर तो बेटे का भूत सवार था। परी को डॉक्टर सरला ने पाला है। पास में खड़े संजय और विनय भी सब बातें सुन रहे थे। परी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। जानकी ने परी को कसकर गले लगाते हुए कहा- बेटा मैं ही तेरी जन्म देने वाली माँ हूँ। पर मैं अभागिन इन सबके कारण तुझे अपने सीने से लगाकर पाल न सकी।
कलावती व संजय ने अपनी बेटी परी व जानकी से क्षमा मांगी। कलावती ने जानकी को गले लगाते हुए कहा- बेटा तूने हम सबकी आंखें खोल दीं। मैं अनपढ़ गवांर बेटा और बेटी में फर्क करती थी। पर आज तुमने मुझे एक नया सबक सिखाया है। अब हम सब एक साथ प्यार से रहेंगे।
परी की बहनों को भी फोन करके बुला लिया गया था। तीनों बहनें रीता, मीता, गीता अपनी छोटी बहन परी और रेखा की दस वर्ष की बेटी स्वीटी से मिलकर बहुत खुश थी। जानकी की आँखों से पोते का पर्दा हट चुका था। उसने अपनी पांचों पोतियों को गले से लगाकर प्यार किया और भरपूर आशीर्वाद दिया।
निशा नंदिनी भारतीय 

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 nishaguptavkv@gmail.com