यादें…..
सुनो !
तुम्हारी यादें कहाँ सहज होती है
जो याद आएं और भूल जाएं
ये तो तूफान और सुनामी लाती है
और क्या !
असहज कर देती है मुझे
टूटने लग जाता है फिर मेरा
वास्तविकता से नाता….
भूल जाती हूँ पलभर के लिए सबकुछ
बस तुम ही तुम होते नजर में
भावनाएं जुड़ने लग जाती है
शायद मेरा दिल भी
निभाता है तुमसे प्रेम का रिश्ता
तभी तो चाहकर भी
मेरे अंतर्मन से दूर न हो सके तुम
ये प्रेम का वजूद इतना अटल क्यों होता है
ताउम्र निभाता है शिद्दत से
सम्वेदनाओं एहसासों से तृप्त
प्रेम का रिश्ता……
सुनो !
निभाती हूं मैं भी
आज जिन सम्बन्धों में हूं
तमाम रीति-रिवाज रिश्ते- नाते
पर ये भी सच है
मन से निकाल नहीं पाई तुम्हें
ये मन तुममें ही रमाया है
शायद ये सच्चा प्रेम है जो मरकर ही
मिटेगा मेरे हृदय से…..
प्रकृति ने बीज जो बोया था मेरे भीतर
प्रेम का
वो आज व्यापक विस्तार होकर पवित्रता के साथ
मेरे अंतिम क्षणों तक तुम्हें समर्पित है।
प्रेम मिलन और विछोह दोनों का नाम है ना !