तन्हाई
तन्हाई क्यों न मुझे रास आई
सही मायनों में तू ही तो थी
मेरी अपनी सबसे बड़ी सगाई ।
अल्फाजों का क्या है चले आते हैं
दबे पाँव सिर उठाये कभी भी जेहन में
क्यों शब्दों से टूटी दिल की सगाई
मस्त महीना सावन का दिल मेरा जलाता है
घनघोर घटा ने जो बिजली चमकाई
पल में धो गयी बारिश आँसूओं की सगाई
क्यों भटकता है ये मन पाने को वो सब
जिस पर न था कभी मेरा अधिकार
न हुई कभी जिससे मोजों की सगाई ।
दिल की धड़कनों ने बना लिया साज
बस दर्द को ही अपना सच्चा हमराही
झूठे हैं ये नाते सारे झूठी है दिल की सगाई।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़