कहानी : बटवारा
अरुण जी की दूरदर्शिता का हर कोई कायल था ! कोई भी समस्या हो, कैसी भी समस्या हो, सब का समाधान होता था उनके पास ! पर कहते हैं ना, वक़्त कब करवट ले कोई नहीं कह सकता !
आज उनके खुद के घर के बच्चे जयदाद के बटवारे को लेकर उनके सामने खड़े थे ! सब यही चाहते थे कि जल्द से जल्द उनको उनका हिस्सा मिल जाए ताकि वो लोग अपने हिसाब से अपनी जिन्दगी जी सकें और रोज़ -रोज़ की कलह से बचा जा सके !
जयदाद के पेपर उनके उनके सामने रख कर बड़ा बेटा हर्ष बोला – “पिता जी, हम दोनों ने सहमति से जयदाद का बटवारा कर दिया है और आपके रहने की व्यवस्था का भी पूरा ध्यान रखा है ! आप छह मास मेरे साथ रहेंगे और छह मास सुधीर के पास !”
अरुण जी ने छोटे बेटे सुधीर की तरफ देखा ! उसने भी सहमति से सिर हिला दिया !
अरुण जी मुस्कुरा कर बोले -“बेटा, तुमने ये कष्ट क्यों किया? मैं तो पहले ही बटवारे के पेपर बनवा चुका हूँ ! यह रहे वो पेपर्स ! कह कर अरुण जी बहुत ही सकून से वहाँ से चले गए !”
दोनों भाई हैरानी और ख़ुशी से एक-दूजे का मुँह ताकने लगे ! पर ये क्या? बटवारा तो बराबर का ही था, पर अंत में उसमें लिखा था कि पहले छह माह बड़ा बेटा और उसका परिवार अरुण जी के साथ रहेगा और दूसरे छह माह उनका दूसरा बेटा और उसका परिवार !
अरुण जी वाकई दूरदर्शी थे !
अंजु गुप्ता
Ji, ye to maine hi likhi hai.
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