ग़ज़ल-उसकी रहमत अगर नहीं मिलती
जब भी उसकी ख़बर नहीं मिलती.
रात मिलती , सहर नहीं मिलती.
मैं तो ख़ुद से कभी न मिल पाता,
उसकी चाहत अगर नहीं मिलती.
चाँदनी तो धरा पे मिलती है,
चाँदनी चाँद पर नहीं मिलती.
सच में कैसे अमीर होता मैं,
दौलते – इश्क गर नहीं मिलती.
जो भी अपनों को छोड़ देता है,
उसको सच्ची डगर नहीं मिलती.
कोई मसला कभी न हल होता,
उसकी रहमत अगर नहीं मिलती.
— डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9140282859