कविता

बेटी अब तुम शस्त्र उठा लो, मत देखो कानूनों को।

बेटी अब तुम शस्त्र उठा लो, मत देखो कानूनों को।
या फिर तुम नरसिंह बनों तेज करो नाखूनों को।।

जिसकी आँखों मे पट्टी है वो क्या तुमको देखेगा?
उसके ही पैरों मे होगा जो भी पैसा फेकेगा।।

तेरी अस्मत तुम्हें बचानी, कोई नही अब आने वाला।
हर रस्ते पर तुम्हें मिलेगा राक्षस अस्मत खाने वाला।।

कब तक आँखों में पानी भर सबकुछ सहती जाओगी।
रो-रो कर तुम अपनी पीड़ा हर घर कहती जाओगी।।

चोर पुलिस नेता भी कुछ है वो एक जैसे रहते हैं।
ये बच्चों की गलती है पे्रस वालों से कहते हैं।।

बहुत हो चुका रोना धोना, मत देखो उन तीनो को।
अब तो तुम नरसिंह बनों तेज करो नाखूनों को।।

…………………………मानस

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,