दरारें…!!
घर की चारदीवारी हो या
एहसासों की दीवार…
कुछ समय की अटखेलियां
तो कभी रिश्तों की मार…
धीरे-धीरे ही कमजोर है करता..
स्वार्थी मन रिस्ता रहता…
जीवन के ताने-बाने में…
जब कोई दरार है पड़ता….
नही भरती कभी चाह के भी…
इक बार जो पड़ जाये दरारें….
नही टिका सकती पहले सी मिनारें…
दोस्ती, मोहब्बत, वफ़ा की सांसे
हर रिश्तों में जीवन की बातें…
नफ़रत की इक रेखा खींचती…
सदियों तक दरारें है दिखती….
मन की सुनें न, बस अहंकार कहे..
जीवन के ताने-बाने में
जब कोई दरार है पड़ता….
मन से मन का मेल नही मिलता
ख्वाहिशों के बीच खेल है चलता
ऊंची-नीची, टेढ़ी-मेढ़ी ..सारी राह
विश्वास की जब भी टूटे नाव…
एहसासों से भरा संमदर…
भेद जाये मन को अंदर…
डूब जाये रिश्तों की नईया
टूट जाती है, छल जाती है..
मन से मन को…मन से निकाल
जीवन के ताने-बाने में
जब कोई दरार है पड़ता….
नंदिता दरारें कभी भरती नहीं..
इक लम्बा समय अंतराल..
सदियों तक मन में हो या
जीवन में किसी मोड़ पर…
यादों के साये में..कहीं
दिख जाता है लिपटा
जीवन के ताने-बाने में
जब कोई दरार है पड़ता….!!
#मेरी रुह@
— नंदिता