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डॉ दिग्विजय शर्मा को “क्रांतिधरा अंतरराष्ट्रीय साहित्य साधक रत्न समान”

मेरठ वह क्रांतिधरा की भूमि है जहाँ भारत की प्रथम आजादी की लड़ाई 10 मई 1857 को मेरठ से शुरू की गई थी। भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में यह दिनांक दर्ज है मेरठ से भारत में आजादी के आंदोलन की शुरुआत हुई जो बाद में पूरे देश में फैल गई ।साथियों आपको बताते हुए हर्ष हो रहा है की इस क्रांतिधरा पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी महाकुंभ में जिसे मेरठ में क्रांतिधरा (लिटरेचर) साहित्यिक महाकुम्भ का नाम दिया गया इस नाम से ही प्रत्येक वर्ष आयोजन किया जाता है । संस्था के संस्थापक डॉ योगेंद्र शर्मा अरुण, अध्यक्ष डॉ विजय पंडित, सचिव पूनम पण्डित ने भव्य आयोजन किया। जिसमें मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल में परम पूज्य जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी जो मुख्य अतिथि के रूप में वहां पधारे। परम पूज्य डॉक्टर लोकेश मुनि जी मुख्य वक्ता के रूप में मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल में पहुंचे। देश और विदेश से पहुंचने वाले साहित्यकारो में प्रोफेसर सरन घई कनाडा से लेखक हैं मुख्य वक्ता के रूप में वहां पधारे। बेल्जियम से पधारे कपिल कुमार जी ,जापान से पधारी डॉ रमा शर्मा जी ,नेपाल से करुणा झा जी अन्य देशों से साहित्यिक विद्वान भी पधारे।आईआईएमटी विश्वविद्यालय के सभागार में कार्यक्रम का आयोजन हुआ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ योगेश मोहन गुप्ता ने सभी अतिथियों का स्वागत किया सत्कार किया आभार डॉ विजय पण्डित ने व्यक्त किया।

साथियों हिंदी साहित्य के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने वाले मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल नाम हमेशा यादओर स्मरणीय रहेगा मुझे जो मान सम्मान मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल में देश-विदेश से पूरे भारत से कनाडा से जापान से मॉरीशस नेपाल इंडोनेशिया बेल्जियम नेपाल, इथोपिया और भारत के लगभग प्रांतों के लोग इसमें शामिल हुए। डॉ शर्मा की हिंदी के प्रति निष्ठा और योगदान विगत 15 वर्षों से हिंदी के प्रचार प्रसार के योगदान व देश विदेश की अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं। इस अवसर पर डॉ दिग्विजय कुमार शर्मा को “क्रांतिधराअंतरराष्ट्रीय साहित्य साधक सम्मान ” से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर देश के महान साहित्यकार शिक्षाविद उपस्थित रहे जिनमें मुख्य हैं डॉ कामराज सिंधु, डॉ विदुषी शर्मा, डॉ सुधाकर पाठक, डॉ रमा वर्मा, डॉ स्वेता दीप्ति, सच्चिदानन्द, डॉ नवीनचंद्र लोहानी, डॉ गम्भीर, सत्यपाल सत्यम, एडवीकेट चित्रा सिंह, एस के दीक्षित, कैलाश जोशी, विशन सागर, शशि श्याल, अशोक मैत्रेय, ओमप्रकाश छत्रिय, डॉ देवनारायण शर्मा, डॉ सुषमा चौधरी, डॉ मोनिका शर्मा, राजकुमार राजन, कवि मनोज, विवेक बजपुरी, ललित जोशी, सत्यपाल सत्यम, अजब पापुलर, देश विदेश के कोेने कोने से हिंदी के मूर्धन्य विद्वान उपस्थित हुए, हिंदी को लेकर विचार विमर्श किया गया की हिंदी किस प्रकार विश्व में अपनी जगह स्थान बना सकती हैं हिंदी व्यापार की भाषा किस तरह बन सकती है आए दिन हिंदी को लेकर अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय सम्मेलन संगोष्ठी हो रही है ,लेकिन हिंदी जहां है वहां आज भी उसी हालात परिस्थिति में है हमें सोचना होगा कि हिंदी को किस प्रकार से विश्व के मानचित्र पर लाया जाए।और हिंदी को वो समान दिया जाए जो अन्य भाषाओं को दिया जाता है। आए दिन हिंदी को लेकर लोकसभा में चर्चा परिचर्चा की जाती है कि हिंदी देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए ।यह कैसे संभव हो सकता है आज हमें आजाद हुए 72 वर्ष हो गए हैं लेकिन देश में राजभाषा तो है लेकिन अब तक अपनी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है यह बड़ा चिंतनीय विचारणीय विषय है। जबकि हिंदी को पूरे विश्व में एक सम्मानित रूप से देखा जाता है केवल और केवल भारत में इस को दोयम का दर्जा दिया गया है मैं मानता हूं कि अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठीओं में हिंदी पर जो चर्चा परिचर्चा हो रही है वह किसी मुकाम किसी निष्कर्ष पर जरूर पहुंचेगी। मेरा मानना है कि 21वीं सदी में हिंदी विश्व की भाषा होगी। यह साहित्यकारों की कहानीकारों की और हिंदी से जुड़े हुए सब तमाम लोगों की भावनाएं हैं हिंदी के प्रति जो लग्न है उनकी मेहनत है एक दिन जरूर रंग लाएगी मेरठ फेस्टिवल में हिंदी को लेकर जो चर्चा हुई निष्कर्ष यह निकला कि हम हिंदी को जब तक दिल से दिमाग से नहीं जुड़ेंगे तब तक हिंदी का विकास होना संभव नहीं है। भारत में हिंदी को जब तक हम अनिवार्य विषय नहीं शुरू करेंगे स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक ।भारत के सर्वोच्च न्यायालय से उच्च न्यायालय तक या सरकारी कामकाज जब तक हिंदी में नहीं होंगे जब तक यह किसी मुकाम तक नहीं पहुच सकती सरकार के जितने भी कार्य है वह सब हिंदी में हो जब यह कार्य शुरू हो जाएंगे मानो हिंदी अपने आप में एक आदरणीय भाषा के रूप में देखी जाएगी।

डॉ. दिग्विजय कुमार शर्मा

शिक्षाविद, साहित्यकार, आगरा M-8218254541