भाषा-साहित्य

नागालैंड का भाषिक परिदृश्य और नागामीज का भविष्य

नागालैंड पूर्वोत्तर भारत का एक प्रमुख राज्य है I यह असम की ब्रह्मपुत्र घाटी और बर्मा के बीच पर्वतीय क्षेत्र की संकरी पट्टी में स्थित है I इसके पूर्व में म्यांमार की अंतराष्ट्रीय सीमा, दक्षिण में मणिपुर, उत्तर और पश्चिम में असम एवं उत्तर- पूर्व में अरुणाचल प्रदेश राज्य स्थित है I यहाँ 16 प्रमुख जनजातियाँ निवास करती हैं- चाकेसांग, अंगामी, कछारी, जेलियांग, आओ, संगतम, सुमी, यिमंगचुर, चांग, लोथा, फोम, पोचुरी, रेंगमा, कोन्यक, कुकी और खिअमनीअंगन I नागालैंड की एक समृद्ध भाषिक परंपरा है I यहाँ की प्रत्येक जनजाति की अलग – अलग भाषा है और इन भाषाओँ के भीतर भी अनेक बोलियाँ हैं जो एक – दूसरे के लिए अबूझ हैं । उदाहरण के लिए, अंगामी जनजाति की अंगामी भाषा है और अंगामी भाषा की भी अनेक बोलियाँ है I इन बोलियों में भी अंतर है I किसी गाँव में एक बोली के भीतर भी भिन्नता है I भौगोलिक परिवर्तन के साथ यह भिन्नता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। भाषाओँ – बोलियों का यह अंतर अन्य समुदायों और जनजातियों के बीच के संचार को बहुत कठिन बना देता है। नागालैंड की कोई भी स्थानीय भाषा सम्पूर्ण प्रदेश में नहीं बोली जाती है I अतः अंग्रेजी को नागालैंड की राजभाषा बनाया गया है जबकि नागामीज बोलचाल की भाषा बन गई है। नागालैंड में लगभग 16 भाषाएं बोली जाती है। इसके अतिरिक्त इन भाषाओं की भी अनेक बोलियाँ है I जितनी जनजातियाँ उससे अधिक भाषाएँ I इस भाषाई परिदृश्य में परस्पर विचार – विनिमय कठिन हो जाता है I एक गांव की भाषा पड़ोसी गांव के लिए अबूझ है। इसलिए नागालैंड के निवासियों ने एक संपर्क भाषा विकसित कर ली है जिसका नाम नागामीज है । यह असमिया, नागा, बांग्ला, हिंदी और नेपाली का मिश्रण है। जार्ज ग्रियर्सन ने नगामीज को असमी का टूटा – फूटा रूप माना है लेकिन भाषा वैज्ञानिक एम. वी. श्रीधर ने इसे ‘पिजन’ (Pidgin) भाषा कहा है I ‘पिजन’ का अर्थ है विभिन्न भाषाओँ के शब्दों के मेल से बनी ऐसी भाषा जो किसी समूह के लोगों के बीच संपर्क भाषा का काम करती हो I ‘पिजन’ की परिभाषा है “दो या दो से अधिक भाषाओँ के मिश्रण से विकसित ऐसी भाषा जिसका उपयोग ऐसे लोगों द्वारा किया जाता है जो एक – दूसरे की भाषा नहीं बोल – समझ सकते हों I” अतः नागामीज को पिजन भाषा कहना अधिक सार्थक और व्यावहारिक है I नागालैंड में नागामीज का उपयोग शिक्षित – अशिक्षित सभी लोगों द्वारा किया जाता है I प्रारंभ में यह मुख्य रूप से बाज़ार और व्यापार – संचार की माध्यम भाषा के रूप में विकसित हुई। राज्य की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी होने के बावजूद नागामीज संपर्क भाषा का कार्य करती है I यह कमोबेश सम्पूर्ण नागालैंड में बोली जाती है। समाचार और रेडियो स्टेशन, शिक्षा, राजनीतिक और सरकारी क्षेत्रों सहित आधिकारिक मीडिया में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसे नागालैंड के सबसे बड़े शहर दिमापुर में बोडो-कछारी समुदाय की मातृभाषा के रूप में भी जाना जाता है। यद्यपि नागा लोगों की उत्पत्ति का निर्धारण करना मुश्किल है, लेकिन आमतौर पर इतिहासकारों का मानना है कि नागालैंड में नागा जनजातियों का आगमन अनेक कालखंडों और अनेक समूहों में हुआ I चीन और अन्य जगहों से विभिन्न नागा जनजातियों ने बर्मा होते हुए नागा पहाड़ियों में प्रवेश किया और नागालैंड और पूर्वोत्तर के अन्य प्रदेशों में अपना निवास बनाया I नागालैंड बीस से अधिक स्वदेशी नागा समूहों के साथ ही कई अन्य आप्रवासी समूहों का निवास है I ये सभी समूह अलग – अलग भाषाएँ बोलते हैं I असम के मैदानी क्षेत्रों में नागालैंड के विभिन्न भाषाई समूह के सदस्यों और असम के मैदानी इलाकों में वस्तु विनिमय-व्यापार केंद्रों में संपर्क के कारण नागामीज मुख्य रूप से एक संपर्क भाषा के रूप में विकसित हुई। अहोम शासक नागाओं पर हमला करने और उस क्षेत्र को अपने अधीन करने के लिए अक्सर अभियान चलाया करते थे जिससे अलग-अलग समय में नागा और असमियों के बीच तनाव और शत्रुता पैदा होती थी । 14 वीं शताब्दी के अंत तक अहोम शासकों पर ब्राह्मणवादी हिंदू प्रभाव बढ़ता गया और धीरे-धीरे असमिया भाषा का उपयोग बढ़ने लगा I इसके बाद ताई भाषा का उपयोग पूरी तरह से बंद हो गया और इंडो-यूरोपीय असमिया भाषा राज्य के भीतर बोली जाने वाली मुख्य भाषा बन गई लेकिन उस समय में भी नागामीज नागा हिल्स की संपर्क भाषा थी जो अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाती थी I 1930 के दशक के बाद एक भाषा के रूप में नागामीज का प्रचार – प्रसार आगे बढ़ा। अंग्रेजी को नागालैंड की एकीकृत आधिकारिक राज्य भाषा के रूप में चुना गया था, लेकिन 5% से कम आबादी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोल पाती थी। निश्चित रूप से अंग्रेजी बोलनेवालों की संख्या अत्यल्प थी I शिक्षक अक्सर कक्षा की चर्चाओं में और विषय वस्तु को ठीक से समझाने के लिए नागामीज का उपयोग करते थे । ज्यादातर नागा बच्चे अंग्रेजी की अपेक्षा नागामीज से परिचित थे और धाराप्रवाह नागामीज बोलते थे I आगे चलकर बहुसंख्यक आबादी द्वारा व्यापक रूप से नागामीज का इस्तेमाल होने लगा I वर्ष 1970 के दशक की शुरुआत में एम. वी. श्रीधर ने नगामी शैक्षिक सामग्री के निर्माण के इरादे से मानकीकरण प्रक्रिया शुरू करने की मांग की। उन्होंने नागा नेताओं और संबंधित अधिकारियों के साथ परामर्श किया जिसका उद्देश्य देवनागरी, असमिया, रोमन और बंगाली लिपियों में से किसी एक लिपि को नगामी के लिए अंगीकार करना था । इस बात पर सहमति बनी कि नगामी के लिए रोमन लिपि को अपना लिया जाए। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान नागालैंड की अधिकांश जनसंख्या ईसाई धर्म को अपना चुकी थी और आमतौर पर रोमन लिपि से परिचित थी I इसलिए सभी लोग रोमन लिपि को अंगीकार करने पर सहमत हो गए । जातीय संघर्ष के बावजूद नागा और गैर-नागा लोगों के बीच संचार की आवश्यकता ने नागामीज के विकास और उपयोग के लिए प्रेरित किया । नागामीज धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र और राज्य के विभिन्न भागों में फैल गई और वर्तमान में दैनिक जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जाता है। अब यह व्यापक संचार की भाषा बन गई है I कालांतर में नागामीज का शब्द भंडार भी समृद्ध हो गया है और वक्ता किसी भी विषय के बारे में इस भाषा में अपनी बात प्रस्तुत करने में सक्षम हैं I अनौपचारिक बातचीत के अलावा नागामीज भाषा का प्रयोग धार्मिक समारोहों, शिक्षा संस्थानों, अस्पतालों में भी किया जाता है । नागामीज ग्रामीण क्षेत्रों में संचार की पसंदीदा भाषा बन गई है। नागामीज में दो कारक और दो काल हैं । इसमें कोई लिंग नहीं होता है, हालांकि हिंदी प्रभाव के कारण विशेष रूप से हिंदी शब्दों और अभिव्यक्तियों में व्याकरणिक लिंग दिखाई देता है। इसमें 26 व्यंजन और 6 स्वर हैं। इसमें आनुनासिक स्वर नहीं हैं । डॉ हरेराम पाठक के अनुसार “नागामीज का भविष्य उज्ज्वल है I अब इस भाषा का प्रयोग केवल संपर्क भाषा के ही रूप में नहीं बल्कि लिखित भाषा के रूप में भी होने लगा है I इस भाषा का विधिवत व्याकरण भी बन चुका है तथा नागालैंड के विभिन्न भाषा भाषियों के बीच संपर्क स्थापित करने के लिए इससे अधिक सुविधाजनक कोई भाषा नहीं है I हिंदी इसकी जगह ले सकती है I हिंदी के प्रयोग से नागालैंडवासी भविष्य में जितना लाभान्वित हो सकेंगे उतना नगामीज के प्रयोग से भी नहीं हो सकते I फिर भी संपर्क भाषा के रूप में नागामीज का प्रयोग हिंदी के लिए एक अच्छा संकेत है I”

*वीरेन्द्र परमार

जन्म स्थान:- ग्राम+पोस्ट-जयमल डुमरी, जिला:- मुजफ्फरपुर(बिहार) -843107, जन्मतिथि:-10 मार्च 1962, शिक्षा:- एम.ए. (हिंदी),बी.एड.,नेट(यूजीसी),पीएच.डी., पूर्वोत्तर भारत के सामाजिक,सांस्कृतिक, भाषिक,साहित्यिक पक्षों,राजभाषा,राष्ट्रभाषा,लोकसाहित्य आदि विषयों पर गंभीर लेखन, प्रकाशित पुस्तकें :1.अरुणाचल का लोकजीवन 2.अरुणाचल के आदिवासी और उनका लोकसाहित्य 3.हिंदी सेवी संस्था कोश 4.राजभाषा विमर्श 5.कथाकार आचार्य शिवपूजन सहाय 6.हिंदी : राजभाषा, जनभाषा,विश्वभाषा 7.पूर्वोत्तर भारत : अतुल्य भारत 8.असम : लोकजीवन और संस्कृति 9.मेघालय : लोकजीवन और संस्कृति 10.त्रिपुरा : लोकजीवन और संस्कृति 11.नागालैंड : लोकजीवन और संस्कृति 12.पूर्वोत्तर भारत की नागा और कुकी–चीन जनजातियाँ 13.उत्तर–पूर्वी भारत के आदिवासी 14.पूर्वोत्तर भारत के पर्व–त्योहार 15.पूर्वोत्तर भारत के सांस्कृतिक आयाम 16.यतो अधर्मः ततो जयः (व्यंग्य संग्रह) 17.मणिपुर : भारत का मणिमुकुट 18.उत्तर-पूर्वी भारत का लोक साहित्य 19.अरुणाचल प्रदेश : लोकजीवन और संस्कृति 20.असम : आदिवासी और लोक साहित्य 21.मिजोरम : आदिवासी और लोक साहित्य 22.पूर्वोत्तर भारत : धर्म और संस्कृति 23.पूर्वोत्तर भारत कोश (तीन खंड) 24.आदिवासी संस्कृति 25.समय होत बलवान (डायरी) 26.समय समर्थ गुरु (डायरी) 27.सिक्किम : लोकजीवन और संस्कृति 28.फूलों का देश नीदरलैंड (यात्रा संस्मरण) I मोबाइल-9868200085, ईमेल:- [email protected]