गिरगिट
गिरगिट देखो निकल पड़ा अपना रंग बदलने,
परायो को दिखाने अपना और अपनों को छलने,
शान बड़ी है चाल में इसकी और चमक चेहरे में,
ठुमक ठुमक के चलता चाल,लगता खूब मटकने,
आँखों में मिठाश है भरी पर मुँह से आग उगलता,
लगता तुमको अपना पर हर डाल पर रंग बदलता,
फितरत है ऐसी है इसकी , हर पल रूप बदलना,
कभी नही है किसी का,बस इसका काम है छलना,
हुआ नही और ना ही होगा कभी किसी का अपना,
मक्कारो का तो हमेशा काम है पीठ पीछे छुरा घोपना।
बहुत खूब लिखा नीरज जी