कविता

कहाँ जा रहें हैं हम

क्या कहूँ कैसे कट रही है जिंदगी
इस उजड़े चमन को लिए हुए,
चेहरे से उड़ रही है हवाईयाॅ
दिल में गमों का क्रंदन लिये हुए।

ऐ मेरे देशवासियों ठंडा करो
इस नफरत के शोलो को,
वर्ना जी न सकेगी भारतमाता
इस शोलो के तपन लिए हुए ।

अब तितलियाॅ भी न जाती हैं
उजड़े गुलशन के बगानों में,
क्योंकि उधर भी सिर्फ कांटे हैं
नफरत के चादर ओढ़े हुए।

चला था मैं अपनों से अपनापन
के खुशियों की तलाश में,
मगर मायूसी ही मिली क्योंकि
वहां लोग बैठे थे टशन लिए हुए ।

वीरजवानों ने लगा दी अपनी जान
भारत माता की रक्षा के लिए,
पर उनको क्या मालूम था कि
देश के अंदर लोग बैठे हैं

एक दूसरे का कफन लिए हुए।

किन किन को सुनाऊ अपने

इस टूटे दिल के अफसानें ए दोस्त,
पता नहीं कैसे जिऐंगे लोग
दिल में इतने मैल और टशन लिए हुए ।

– मृदुल