गीतिका/ग़ज़ल

सिफर 

सारा जहान घूम कर सही, आती है ज़रुर
जो आह निकले, वो रंग दिखाती है ज़रूर
 वक़्त चलता जाता है, कभी ठहरता नहीं
आदत पुरानी है ये, कुछ सिखाती है ज़रूर
सांस-दर-सांस कई साल बीतते गए
रवायत पुरानी है मगर निभाती है ज़रूर
सुबह आंखें खोलने से रात पलकें मूंदने तक
कुछ और न हो, याद तेरी आती है ज़रूर
हयात का सफर माना आगे दौड़ता रहा
बचपन की बातें दिल को गुदगुदाती हैं ज़रूर
पशेमानियों से दूर चलो एक सफर करें
दुनिया सिफर कहके ये दिल जलाती है ज़रूर
अहद-ए-वाबस्तगी का दौर चलता ही चले
बातों में कोई बात निकल आती है ज़रूर
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी