हाँ! मैं वृक्षों में वृक्ष पीपल हूँ,
मैं अश्वत्थ हूँ, मैं देव वृक्ष हूँ।
सामान्य सा अस्तित्व मेरा
लेकिन सब पर भारी हूँ।
नहीं चाहिए सुंदर क्यारी
नहीं चाहिए खाद और पानी
नहीं चाहिए बाग- बगीचा
इंतजार नहीं किसी मौसम का,
हर मौसम को अपनाता हूँ
देकर अपनी प्राण- वायु
जग को सजीव बनाता हूँ।
हाँ ! मैं वृक्षों में वृक्ष पीपल हूँ,
मैं अश्वत्थ हूँ, मैं देव वृक्ष हूँ।
बैठकर मेरी सुखद छाया में
पथिक मुग्ध हो जाता है,
सुगंधित सुरभित पवित्र वायु का
भरपूर आनंद उठाता है।
सात्विक स्पर्श से अंत: चेतना प्रस्फुटित हो प्रफुल्लित होती है,
श्री हरि का जीवंत रूप पीपल में मिल जाता है।
पत्र-कंद-मूल-फल औषधियों की खान हैं,
इसके सेवन से रोगी को मिलता जीवन दान है।
देकर शुभ संकेत संस्कारों के
समिधा बन यज्ञ की वातावरण
शुद्ध बनाता हूँ।
हाँ ! मैं वृक्षों में वृक्ष पीपल हूँ,
मैं अश्वत्थ हूँ, मैं देव वृक्ष हूँ।
— निशा नंदिनी भारतीय