ग़ज़ल
उसकी तरक्की तो गई टल
जिसने सोचा करेंगे कल
मुश्किल से डरना कैसा
कोशिश कर निकलेगा हल
दिल में जब रंजिश नहीं कोई
फिर माथे पर क्यों हैं बल
लंबी-लंबी बातें छोड़
मेहनत कर पाएगा फल
कोई साथ नहीं देगा
अपनी आग में आप ही जल
गम को ढाल के लफ़्ज़ों में
कागज़ काले करता चल
— भरत मल्होत्रा