सहमी सी सुबह है,सूनी- सूनी शाम है ।
गतिमान समय में,कैसा ये विराम है ।।
दरवाजे बंद ,नहीं खुलती हैं खिड़कियां ।
सन्नाटा बोलता है,चुप -चुप हैं तितलियाँ।।
दौर कैसा आया,डरे -डरे शहर , ग्राम हैं!
सहमी सी सुबह है,सूनी -सूनी शाम है ।।
लगता था बहुत बड़ा अपना, विज्ञान है ।
संचित है कोष बड़ा ,विश्वव्यापी ज्ञान है।।
छोटा सा कोराना,मचाये कोहराम है।
सहमी सी सुबह है,सूनी सूनी शाम है ।।
पुलिस जवान ,शहर ग्राम ,गली -गली घूमते ।।
तालाबंदी देश में,मास्क मुंह को चूमते ।।
विधाता ही जाने ,क्या इसका अंजाम है!
सहमी सी सुबह है,सूनी सूनी शाम है ।।
हाथ धोना बार -बार,मास्क भी लगाना है।
सहयोग करें डॉक्टर का,निजात हमे पाना है।।
जिताना है देश को ,घर करना आराम है ।।
सहमी सी सुबह है ,सूनी सूनी शाम है ।।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)