कोरोना युद्ध व भारत
कोरोना एक संक्रमण बन कर देश में आया तो है और चला भी जाएगा, किंतु यह जो सबक सिखा कर जाने वाला है, उस पर हम जरा गौर कर लें।
कोरोना ने हमें बताया की भारत मेडिसिन प्रोडक्शन में कितना आगे है, विश्व के कई देशों में कोरोना से संबंधित दवाई व स्वास्थ्य संसाधन का निर्यात भारत कर रहा है जबकि विश्व के कई देश अपने संसाधनों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। ऐसे विकट काल में भी भारत ने निर्यात प्रतिबंधित नहीं किया बल्कि अपना उत्पादन बढ़ाया यह साहस हमारे देश ने कोरोना के कारण ही देखा है।
हमने देखा है सफाई कर्मी भी योद्धा बन सकते हैं, जो अपने प्राणों को दांव पर लगाकर नगर बस्तियों के सैनिटाइजेशन और अन्य सफाई कार्यो में जी जान से लगे हुए हैं। वास्तव में पूरे देश को सफाई कर्मियों को नमन करना चाहिए, वे बिल्कुल इसके हकदार है।
हमने यह भी देखा की तालियां बजाकर तो उत्साहवर्धन किया जा सकता है परंतु थालियां बजाकर भी कोरोना योद्धाओं का उत्साह बढ़ाया जा सकता है, यह देश ने पहली बार ही देखा। जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से आह्वान किया, तो पूरा देश एकजुट होकर शंख घंटी थाली बजाकर कोरोना से संघर्ष करने वाले योद्धाओं को नमन करता है, उनके उत्साह को बढ़ाता है, उन्हें डटे रहे के लिए प्रेरित करता है।
हमने यह भी देखा कि दीपक जलाकर अंधेरे को दूर किया जा सकता है परंतु दीपक की रोशनी से देश को एकजुट भी किया जा सकता है। जोकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात के 9:00 बजे 9 मिनट 9 दीपक के माध्यम से पूरे देश को एकजुट करके एक ऐसी शक्ति का निर्माण किया, जो कोरोनावायरस से भी लड़ सकती है और विश्व की हर ताकत से लड़ सकती है, जो भारत के लिए संकट बनने का दुस्साहस करेगी। देश ने इस माध्यम से ऐसी एकजुटता को देखा है जो शांति काल या युद्ध काल में कंधे से कंधा मिलाकर सेना व पुलिस के साथ देश की रक्षा के लिए सड़कों पर भी आ सकती है और लड़ भी सकती है। परंतु आज प्रश्न घर में बैठने का था, तो पूरे देश ने इसे एकजुटता के साथ संकल्प बनाकर पूर्ण किया। यह इतिहास में पहली बार है कि देश के किसी नायक के कहने पर पूरा देश व्यापार, काम, नौकरी, अपने जीवन यापन के कर्मों को छोड़कर घर में बैठा है ताकि देश सुरक्षित रहे। इसी का परिणाम है कि जो संक्रमण यूरोपीय देशों मैं फैला संक्रमण का वह अनुपात भारत में नहीं दिखाई दिया, जबकि जनसंख्या घनत्व व परिमाण के अनुरूप भारत के लिए कोरोना संक्रमण भीषण त्रासदी बन सकता था, करोड़ों लोग इस संक्रमण से मर सकते थे, भारत की अर्थव्यवस्था चूर चूर हो सकती थी, किंतु भारत की एकजुट शक्ति व धर्मपरायणता, देश को हर संकट से उबारने में सक्षम है। इसी शक्ति का उपयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को एकजुट करने में किया। जनता कर्फ्यू, उसके बाद पहला 21 दिन का लॉक डाउन, उसके बाद पुनः 21 दिन के लॉक डाउन में जनता ने पूर्ण समर्थन से सरकार व प्रशासन का सहयोग किया। अनेक समाजसेवी संस्था, स्वयंसेवक संघ, हिंदू संगठनों ने इस आपदा की घड़ी में प्रशासन का भरपूर सहयोग किया । असहाय लोगों को भोजन पहुंचाने तथा भोजन निर्माण का काम जो स्थानीय लोगों के सहयोग से स्वयंसेवी संस्थाओं ने संभाला, वह प्रशंसनीय है। इतना ही नहीं जनता से प्रधानमंत्री राहत कोष में दान का भी आग्रह इन स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा हुआ। जिसके कारण इतनी बड़ी जनसंख्या और इतना व्यापक क्षेत्र होने के बाद भी बहुत कम घटनाएं व स्थान ऐसे हुए जहां संक्रमण का उल्लंघन हुआ। साथ ही देश ने यह भी देखा कि संकट की इस परिस्थिति में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो सहयोग को तैयार नहीं डॉक्टरों पर हमले, पुलिस पर पथराव होते भी देश की जनता ने देखा और यह पथराव किसने किया यह भी ध्यान में आया। यह पहला असहयोग नहीं था, जब देश की किसी संवैधानिक संस्था का असहयोग इस वर्ग ने किया हो किंतु कोरोना संक्रमण जैसे विकट घटनाक्रम के बाद भी सरकार व प्रशासन का सहयोग न करना तथा सफाई कर्मी, स्वास्थ्य कर्मी, डॉक्टर व पुलिस पर पत्थर से हमले करना दुर्भाग्यपूर्ण था, जिसके कारण यह एक वर्ग पूरे देश की निंदा का पात्र बना। देश के सभ्य समाज ने अच्छे से जाना कि डॉक्टर व पुलिस जो इस संक्रमण में ईश्वर के दूत बनकर सामने आए उन पर पथराव करने वाला, भारत का नागरिक नहीं हो सकता, ना ही देश के प्रति उसमें देशभक्ति की भावना है और ना ही मानवीय दृष्टिकोण। इस तरह के लोग केवल जेल में रखने लायक हैं, इन्हें समाज के बीच रहने का कोई अधिकार नहीं। देश ने यह भी देखा कि पुलिस के जवान स्वयं का बलिदान करके लोगों को बचाने के लिए उनकी सहायता भी कर रहे हैं, उन्हें भोजन भी खिला रहे हैं, उन्हें पकड़ भी रहे हैं और बाहर निकलने पर उन्हें दंडित भी कर रहे हैं। एक पुलिस के जवान के मन की भावना उस राजा की तरह होती है जो दंड देने के बाद स्वयं भी पश्चाताप की अग्नि में जलता है परंतु कोरोना के संक्रमण के कारण घर से बाहर निकले हुए लोग खतरा बन सकते है इसी कारण पुलिस को यदा-कदा थोड़ा बल प्रयोग करना पड़ा। जब प्रश्न देश का हो, जब प्रश्न देश की जनता को बचाने का हो, जब प्रश्न जन जन के जीवन का हो, तब देश के पुलिस जवानों का यह बलिदान हमें हमेशा याद रखना चाहिए। वे आज घर नहीं जा रहे, अपने परिवार बच्चों से नहीं मिल रहे, भोजन भी घर के बाहर बैठकर कर रहे हैं, ताकि उनके स्वजन कोरोना से संक्रमित ना हो जाए। उसके बाद भी हमारी रक्षा के लिए समय से अधिक ड्यूटी कर रहे हैं। आज पूरे देश के ऐसे पुलिस जवानों को मैं नमन करता हूं। कई ऐसे स्वास्थ्य कर्मी व डॉक्टर भी है जो इलाज करते हुए कोरोना से संक्रमित हुए, अब स्वयं अपना इलाज करवा रहे हैं, परंतु संसाधन ना होने के बाद भी देश के डॉक्टरों ने कभी हार नहीं मानी, ना ही ऐसे किसी व्यक्ति को मरने दिया जिन्होंने उन पर पत्थर चलाए थे, जिन्होंने उन पर थूका था। ऐसे लोगों को भी बचाने के लिए डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों ने अपना जीवन दाव पर लगा दिया। वे लोग जो पत्थर चलाते हैं जो मानव के रूप में पिशाच है, वे पुलिस व डॉक्टरों की बलिदान को भला क्या समझेंगे ? जिन्हें इतनी समझ नहीं कि जो उनकी सेवा कर रहा है उनसे अच्छा व्यवहार करना, इतनी मानवता नहीं जो उनकी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं उनका सहयोग करना। वह भले ही किसी मजहब या पंथ के हो मानवता उनका धर्म नहीं, यह तो निश्चित है। फिर वह चाहे जितना ज्ञान अर्जित कर ले या चाहे जितने ऊंचे पद पर बैठ जाएं वह दानव अवश्य बन सकते हैं किंतु मानव नहीं बन सकते। देश ने मजहबी जमात को भी देखा जो कोरोना को मजाक में लेकर पूरे भारत में संक्रमण फैलाने का मुख्य हथियार बनी। सोचने वाली बात है इस्लाम के प्रचार के लिए जमात की शुरुवात भारत मे हुई। आखिर जमात की क्या आवश्यकता ? प्रचार की क्या आवश्यकता ? जान पड़ी जिसके कारण जमात का निर्माण हुआ। फिर जमात का पूरा नेटवर्क गुप्त रूप से काम करता है, यह सोचने वाली बात है कि विदेश से टूरिज्म वीजा लेकर हजारों लोग भारत में आते है और उनके साथ भारत के ही लाखों लोग अलग अलग जगह जाकर इस्लाम का प्रचार करते है, यह देश के कई लोगों ने पहली बार जाना था। पुलिस प्रशासन तो क्या गुप्तचर एजेंसियों को भी इनके रुकने, ठहरने, आने जाने की जानकारी नही होती। कौन व्यक्ति कहाँ से आया, कहां गया, किससे मिला, इसका कोई ब्यौरा सरकारी तंत्र के पास नही रहता। यह ऐसा अवसर था जब समस्य मजहबी जमातों को केंद्रित करके सघन जांच अभियान चलाया जाना चाहिए था, किन्तु कहीं ये मजहबी उन्माद न करने लगे इस डर के कारण सरकार ने यह निर्णय नही लिया। वरना संक्रमण रोकने का काम छोड़कर सेना व पुलिस को दंगे व उत्पात रोकने में लगाना पड़ता। अब जबकि कई वजह, कारण और सूत्र मिलें है, मजहबी जमात पर पूर्ण प्रतिबंध का निर्णय सरकार को करना चाहिए। इससे देश में शांति व्यवस्था स्थापित करने में सकारात्मक परिणाम हासिल होंगे। इसके लिए यदि हमें अमेरिका या इजराइल से भी प्रेरणा लेनी पड़े तो लेना चाहिए, जो लगाम उन देशों ने वर्ग विशेष पर लगाई है, उसका अनुसरण भारत को भी एक समय में करना होगा।
— मंगलेश सोनी