पर्यावरण और मानसून
मानसून पूर्व आई आँधी-तूफान और मूसलाधार बारिश में ने मिट्टी के घर गिरा दिए, टीन के घरों को उड़ा दिए । पक्के मकानों की वेंटिलेशन को तोड़कर पानी सोते के ऊपर उड़ेल दिए ! खेतों में लगे फसल यथा- गेहूँ, मकई आदि और कटे फसल को तबाह कर दिए । कई हजार पेड़ों को उजाड़ दिए, तो बिजली के तारों और खम्भों को तहस-नहस कर दिए ! कटिहार सहित पूर्णिया प्रमंडल में अबतक बिजली गायब है । एक तो कोरोना कहर के कारण लॉकडाउन है, दूजे आँधी-तूफान यानी एक तो नीम तीता, दूजे करेला चढ़ाय।
अगर महामारी में इस तूफान की दुःखद स्थितियों को देखिए तो एक और कहावत चरितार्थ होती है यानी कोढ़ में खाज । मेरी भी क्षतियाँ हुई हैं । वहीं असंतुलित पर्यावरण के कारणगोरैया के आहार में आजकल कमी आयी है, जिससे गौरैया को खाने के लिए चीजें नहीं मिल रही हैं। गोरैया कीड़ों को भी खाना पसंद करती है, लेकिन शहरों में ढकी नालियों के चलते अब गोरैयों के लिए कीड़ों की उपलब्धता में भी भारी कमी आई है, जिससे उनका जीवन असहज हुआ है। इस पक्षी की सैकड़ों प्रजातियां दुनिया के हर कोने में पाई जाती हैं, लेकिन प्राकृतिक स्थलों के बदलाव के कारण अब इनकी संख्या में तेजी से कमी हो रही है।
विश्व पर्यावरण दिवस पर गोरैया की संरक्षण के बारे में सोचें ! एक रपट के अनुसार, सिर्फ गोरैया ही नहीं, वरन दुनिया की हर 8वीं चिड़िया की प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिकी संस्था ‘कार्नेल लैब’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1966 की संख्या के आधार पर गोरैया की संख्या में 84% तक की कमी आई है। ब्रिटेन में गोरैया की संख्या अब आधी से भी कम रह गई है। इस पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ही प्रतिवर्ष 20 मार्च को विश्व गोरैया दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने 2010 में गोरैया पर डाकटिकट जारी किया और दिल्ली सरकार की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने वर्ष 2012 में गौरैया को दिल्ली का राज्य पक्षी घोषित की। हमें युद्धस्तर पर इस मासूम पक्षी के संरक्षण के लिए अतुलनीय प्रयास करने ही पड़ेंगे, तभी हमारी पीढ़ी इसे देख पाएंगी!