लघुकथा

कहर कोरोना

दादाजी चार पांच साल अस्वस्थता वश पलंग पर रहे फिर कोमा में अंततः परलोक सिधारे, दादी ही उनका सब कार्य करती थी क्योंकि अवश थे नित्य क्रियाओं के लिए भी दादी पर आश्रित थे।
रिमझिम दादी को पूजा करते हमेशा भगवान से ये कहते सुनती थी कि हे भगवान हाड गौडा सलामत रखना मुझे चलते फिरते में ही उठा लेना, किसी की सेवा के लिये मोहताज मत बनाना।
रिमझिम पूछती दादी आप हर समय भगवान से मोत क्यों मांगती हो? अभी तो आप हिट एंड फिट हो, तब दादी कहती हां बेटा फिट रहते ही उठा ले भगवान, क्योंकि पाजी बीमारी में अशक्त हो किसी की सेवा का मोहताज होना नहीं चाहती। और फिर अपने परिजनो के हाथों में चली जाऊं इससे अच्छा और क्या?
लेकिन हमेशा ईश्वर से मौत की दुआ मांगने वाली दादी जबसे करोना का कहर फैला है दिन रात कहती है हे ईश्वर इस करोना से बचाना, और घर से बाहर नहीं निकलती।
तब रिमझिम ने कहा क्या हुआ दादी आप तो मौत से नहीं डरतीं, हमेशा मोत की कामना करने वाली आप करोना से डर गयीं।
दादी बोली- नहीं रे मैं मोत से नहीं डरती, मगर करोना की मौत नहीं मरना।
रिमझिम- क्यों ?
दादी बोली- क्या क्यों करोना की गिरफ्त वाले को ना तो अपनों का कंधा मिले और ना ये शरीर का कोई अंग किसी के काम आ सके। कोई देख नहीं सके, छू ना सके, लावारिस जैसे जला देते हैं और ना ही देहदान कर सके।
वो कहावत है ना हाथी मरे तो भी सवा लाख का, तो देहदान करो तो मर कर भी दो चार को जीवन दान मिले, करोना में मरुं तो लावारिस की तरह जला देंगे और शुरु हो गयी ईश्वर इस करोना से बचा।

— गीता पुरोहित

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,