प्रेम
प्रेम
एक अभिव्यक्ति
जिसे व्यक्त नही किया
जाता।
प्रेम।
एक आलौकिक अनछुआ अहसास
जिसे छूआ नही
बल्कि महसूस किया जाता है।
प्रेम।
एक समपर्ण,
एक रिश्ता
पवित्र व पावन।
प्रेम।
सिर्फ ईश्वरीय स्वरूप
प्रेम।
गंगा की निर्मलता
अम्बर सी महानता
धरा सी दानता
जो सिर्फ देना जानता है
पाने की अभिलाषा से दूर
बहुत दूर।
मन्दिर के दिये की लौ सा
जानता जलना और सिर्फ जलना।
प्रेम ।
कृष्ण की भक्ति सा
मुरली के मधुर तान सा।
जिसमे सुध-बुध खो
जन्मता है वैराग्य।
जिसे पूजना
चाहना
उम्रभर
शिद्दत के साथ।
जीना सिर्फ और सिर्फ प्रेम।।
— सविता वर्मा “ग़ज़ल”