कविता

है इश्क़ अग़र

है इश्क़ अगर तो जताना ही होगा
दिलबर को पहले बताना ही होगा
पसंद नापसंद की है परवाह कैसी
तोहफ़े को पहले छुपाना ही होगा
धड़कन हृदय की सुनाने की ख़ातिर
उसको गले तो लगाना ही होगा
आँखों ही आँखों में जब हों इशारे
ओ पगली लटों को हटाना ही होगा
छूकर तुम्हें अब है महसूस करना
होठों को माथे लगाना ही होगा
ख़्वाबों को रस्ता देने की ख़ातिर
नींदों को रातों में आना ही होगा
मज़ा बेक़रारी का लेना अगर हो
मिलन के पलों को घटाना ही होगा
अमित ‘मौन’

अमित मिश्रा 'मौन'

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