कविता

ज्योति

ज्ञान ज्योति जग में है
परम ज्योति उच्चतम ।
ज्योति ये संसार में ,
निशिदिन सदा जले।
बैरभाव दूर हों सब ,
बस प्रेमभाव ही पले ।
अंधकार हो नहीं कहीं
जगत में बस प्रकाश हो।
ज्योतिपर्व ही मने हमेशा।
अमावस्या दूर ही रहे ।
आपस में हो भाईचारा,
वैमनस्यता सब दूर हो ।
स्वर सभी के बस समाये
अमृतमयी वाणी प्रिये ।
जनजन में आपस में हो,
प्रेम का बस रिश्ता मधुर।
ज्ञानज्योति जले निशिदिन
परम ज्योति अनवरत ।

— डॉ.सरला सिंह स्निग्धा

डॉ. सरला सिंह स्निग्धा

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