कविता

जीवन

क्षण क्षण ये रंग बदलता जीवन
पल पल घड़ी सा चलता जीवन
आठ प्रहर में सबका ढलता जीवन
हर प्रहर संग कुछ बदलता जीवन
नवपल्लव सा प्रथम खुलता जीवन
फिर हर पल नए रंग बदलता जीवन
नित सब्ज़ रंग नवीन उगलता जीवन
बेरंग हो इक दिन फिर ढलता जीवन
शुष्क जर्जर टूट धरा में मिलता जीवन
उर्वरा से मिल नए रूप में खिलता जीवन
बचपन यौवन प्रौढ बुढ़ापा गलता जीवन
चार प्रहर में ढलता घड़ी सा चलता जीवन

— सुनीता द्विवेदी

सुनीता द्विवेदी

होम मेकर हूं हिन्दी व आंग्ल विषय में परास्नातक हूं बी.एड हूं कविताएं लिखने का शौक है रहस्यवादी काव्य में दिलचस्पी है मुझे किताबें पढ़ना और घूमने का शौक है पिता का नाम : सुरेश कुमार शुक्ला जिला : कानपुर प्रदेश : उत्तर प्रदेश