बदलते चेहरे
आजकल उस पर अपनापन छाया है।
लगता है फिर चेहरे पर चेहरा लगाया है।।
उसके अपनेपन से,तूने हर बार धोखा खाया है।
क्या करें , उसने गिरगिट जैसा हुनर जो पाया है।।
वो जल से निश्छल रंग को भी बदल देता है।
उसने मयखाने की मय का हुनर जो पाया है।।
बता मुझे तू कैसे बचेगा उसकी अय्यारी से,
उसके हुनर से तो आईना भी ना बच पाया है।
वो जो कहते है कि आईना झूठ बोलता ही नही,
उन्हें जाकर जरा ये समझा दे कोई,
झूठा मुखोटा चेहरे का,आईना भी ना हटा पाया है।
अब चैन से जीना है तो तू भी रंग बदलना शीख ले,
सीधे-साधे लोगो को तो सबने बेवकूफ ही बताया है।
जो आजकल तेरे काँधे पर हाथ रख साथ चल रहा है।
ध्यान से देख,उसने दूसरे हाथ मे छुरा छुपाया है।।
किसी भी पल वो तेरी पीठ में छुरा घोप सकता है।
उसने हर बार की तरह चेहरे पर चेहरा लगाया है।।