थोड़ा – सा
आओ, थोड़ा जी लेते हैं ।
जीवन विष का प्याला है।
अमृत कर के पी लेते हैं।
मौत तो आनी है ,
एक दिन
उससे पहले,
आओ थोड़ा जी लेते हैं।
कितना खुद को,
मारा पल- पल।
जीवन में सब ,
हारा पल -पल।
जो बचा हुआ है,
उसको हाथों में भरकर।
सारी तमन्नायें पी लेते हैं ।
आओ थोड़ा जी लेते हैं।
किसका था इंतजार हमें ।
क्या पाया जीवन का सार …प्रिय
दिन आते- जाते रहते हैं।
सार्थक भी निरर्थक हो रहते हैं।
फिर क्यों भागम- भाग …..प्रिय ।
हम शून्य हुए जाते हैं।
मर- मर कर जिए जाते हैं।
आओ थोड़ा -सा ,
सच में जी लेते हैं।
जीवन विष को ,
अमृत कर पी लेते हैं।
— प्रीति शर्मा “असीम”