यों नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते क्यों देवता ?
एक सुशील माँ किसी परिवार की मानक-रूप होती है । पिता के नहीं रहते भी एक माँ पूरे परिवार को बखूबी संभाल सकती है । माँ की सर्वोच्चता के कई उदाहरण है, वहीं एक बेटी अपनी माँ की गौरवशाली परम्परा को निभाती है । यह नेपोलियन के ही शब्द थे-“मुझे कोई मेरी माँ दे दो, मैं स्वतंत्रचित्त और स्वस्थ राष्ट्र दूँगा।’ अपने हिंदी व्याकरण में राष्ट्र या देश शब्द को स्त्रीलिंग मानी गयी है । भूख मिटाने के कारण धरती को माँ, तो अपने आँचल का सान्निध्य देने के कारण अपना देश ‘भारत’ को भी ‘माता’ कही जाती है । ‘मदर इंडिया’ में नर्गिस दत्त की भूमिका को सच्चे अर्थों में एक भारतीय माँ के लिए अतुल्य उदाहरण कही जा सकती है।
इतना ही नहीं, किसी के मर्दांनगी की तुलना, माँ की दूध पीने से ही लगाई जाती है, वहीं बेटी और प्रेयसी के त्याग को कतई नकारी नहीं जा सकती ! फिर हम नित्य प्रातःस्मरणीय महिलाओं की सिर्फ एक दिन ही पूजा करें, उनकी प्रति ज्यास्ती होगी ! अगर ऐसी ही रही, तब कम से कम ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः’ वाले देश में यह प्रथा कालान्तर में अमंगलकारी स्थापित होनी जड़सिद्ध हो जायेगी ।