कविता

/ अपना कुछ करो.. अपना कुछ बनो /

तर्क करो अपने आप में
तर्क करो विपक्षी से
वैज्ञानिकता के सहारे
असफल हो गये हो तो
चलो गहन अध्ययन की ओर
एकांत में एकाग्र चित्त का बनो
साधाना में सत्य को पहचानो
मनुष्य के तहत सोचो
प्राणी के समतल पर विचरो
जिंदगी का अहसास करो
मन की चेष्टा पहचानो
उसकी अखंड़ता का सदुपयोग करो
सुख – शांति सबका होने दो
किसी का बाधक मत बनो
सत्य धर्म के साथ चलो
अपनी अनुभूति का स्वाद लो
तुम भी एक नया धर्म बनो
दूसरे को पीड़ा मत पहुँचा दो
जीने का, स्वेच्छा तंत्र सबका समझो
गहनतम चिंतक बनो
अपनी अंतर्वाणी सुनो
विश्व कल्याण की कामना करो
अपना कुछ करो
अपना कुछ बनो
दुनिया को पावन धाम बनाओ
अपनी स्वीय चेतना से
झूठ मत बोलो, धोखा मत करो
किसी का अन्याय मत बनो
अव्वल दर्जे का जीवन जियो
सबको जीवन का सहभागी समझो
चलो सबके साथ, विकास के पथ पर
ऊँच – नीच, अमीर – गरीब, जाति – पाँति
इन भेद – विभेदों को तोड़ो
अपना कछ करो
अपना कुछ बनो ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।