गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खिली हुई है रंगत आहिस्ता से आये हैं।
खुमार आँखों में ले नींद से जगाये हैं।।
हसींन ख़्वाब हो जैसे वो आँखों के मेरी।
करीब आके तसब्बुर में मुस्कुराये हैं।।
लेकर के हाथों में प्याला शराब का यारो।
नशा वो आज बड़े प्यार से पिलाये हैं।।
वो बैठकर मेरे पहलू में गुफ्तगू कर लें।
ये सोच कर मेरे लब यार मुस्कुराये हैं।।
पहन के हार निशानी करीब आकर के।
वो हमसे जाने निगाहों को क्यूं चुराये हैं।।
ये पूछ कर देखो तुम ही जरा हया क्यूं है।
लिये लिहाज की लाली वो सिर झुकाये हैं।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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