एकाकीपन
अब सन्नाटों की ये सन-सन
लुभा रही संगीत कोई बन
ना समझो इसको तन्हाई
ना ही कहो इसे सूनापन
भा रहा अब एकाकीपन।
सुकूँ मिल रहा मन ही मन
हो रहा स्वयं से ऐसा मिलन
ना समझो इसको लाचारी
ना ही कहो इसे पागलपन
भा रहा अब एकाकीपन।
विचारपूर्ण सागर के अन्दर
चलता रहता अमृत-मंथन
ना समझो इसको बेकारी
ना ही कहो इसे खालीपन
भा रहा अब एकाकीपन।