लघुकथा

बरसों लंबी दूरी

आज सुबह ही दिनेश ने वाट्सऐप पर एक पत्र शेयर किया-

”प्यारे पापा,
आप तो हमें भूल गए होंगे, पर हम आपको कभी नहीं भुला पाए. भुला तो आप भी नहीं पाए होंगे, पर अपने आप को भूलने का छलावा अवश्य दे रहे होंगे.

यह छलावा किसने किसको दिया, आपने हमको या हमने आपको, या फिर समय ने हम सबको, इस पर विचार करने का समय अभी नहीं है. हम सब एक दूसरे से भागते रहे. इसी दौरान कब और कैसे यह दूरी बरसों लंबी होती चली गई, हमें पता ही नहीं चला.

अपने ही साये से छिपती दादी मां की सांसों का खज़ाना खाली हो गया, दमदार दादा जी ने आत्महत्या कर ली और मैट्रो के नीचे कट कर चल बसे, बराबर संघर्ष करने का छलावा करती मां की बदसलूकी ने उन्हें मायके में भी चैन नहीं लेने दिया. मैं तीस साल की होने आई हूं और अभी तक जीवन साथी की तलाश में हूं.
जीवन साथी तो बहुत बनने को तैयार थे, पर मां को अकेले छोड़कर कैसे जाऊं! समझ नहीं पा रही.

चैन से तो आप भी नहीं रह पा रहे होंगे. कई बरस तक आप मंगलवार का प्रसाद देने रूपाली आंटी के पास जाते रहे, हमारा हाल-चाल जानने को छटपटाते रहे, अब तो वे भी आपको ढूंढ रही हैं.

मैं भी बहुत समय से आपको ढूंढ रही थी, कहीं से आपका पता नहीं मिल रहा था. बुआ जी से भी आपका कोई सम्पर्क नहीं है. आज अचानक वाट्सऐप पर आपका पता चल गया. छोटी-सी शीबू को गले से लिपटाए आपके फोटो ने राज खोल दिया. इसलिए आपको पत्र लिखने की जुर्रत कर रही हूं.

अगर आप आ जाते हैं, तो शायद हम सब खुद से मुलाकात कर पाएंगे. इसी आग्रह के साथ, आपकी प्रतीक्षा में-

आपकी शीबू”

उसके बाद वाट्सऐप पर उसकी कोई हलचल नहीं है. दिनेश ने शायद बरसों लंबी दूरी तय करने का इरादा कर लिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “बरसों लंबी दूरी

  • लीला तिवानी

    घर-परिवार हो या देश-समाज, बदसलूकी रिश्तों में घुन लगा देती है. ऐसे में उसका खामियाजा सब को ही भुगतना पड़ता है. यही खामियाजा बरसों लंबी दूरी और मन की गांठ का कारण बनता है. कोशिश करने से कभी-कभी बरसों लंबी दूरी भी तय हो जाती है.

Comments are closed.