मिट्टी की खुशबू
मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू
नथवों में आते ही
बरबस नज़रें दौड़ गई
घर के आंगन की ओर
शायद वारिस ने भिगो
दिया है धरती को
और उसके भीगने से
बदन से उसके उठ रही
इस खुशबू ने खींच लिया
मुझको अपनी ओर
मैं उठ खड़ा और दौड़ पड़ा
मिलने को अपनी उस माटी से
तिलक लगाया चंदन सा उसका
माथे पे पहले अपने
फिर रपट गया उस धरती पे
सना लिया अपने को उस माटी में
जिसपे मैं खेला बड़ा
और जवान हुआ
यह मिट्टी ही तो मेरा अस्तित्व है
यही तो मेरा है निशान
पैदा हुआ इस मिट्टी से
अब मिलना भी तो इसमें है
यह मेरी मिट्टी है
यह मेरी मिट्टी है
*ब्रजेश*