6 आदरणीय कविताएँ
1.
महान कौन ?
योग और घटाव के बाद भी
उनमें चतुरंग नहीं दिखा !
सिर्फ पुरापंथी लिए
शास्त्रीय के प्रासंगिक
गति कायम रही,
गतिविधि कायम रही !
यह गतिविधि ही
उस शख्स को महान बनाया।
2.
अरिहंत स्वांत:
उनकी पीड़ा से अवगत कराइये,
उन्हें नए सिरे से स्वगत कराइये !
प्रकट कुछ भी नहीं !
है जो भी,
उसे अरिहंत कीजिए,
सुखाय स्वांत के स्वत:
है परिधित: !
प्रासंगिक और अप्रासंगिक !
यानी किक और गिक !
3.
संस्कृत और रोटी
बिहार बोर्ड में
इंटर में संस्कृत है कहाँ ?
शिक्षक भी नहीं !
हम दूसरे बोर्ड की बात
क्यों करें, मोहतरम !
यह गलत है,
जिनकी रोटी खाते हैं,
उनके साथ धोखा तो नहीं !
4.
कथित फॅमिनिज़्म
महिलाएं ‘फॅमिनिज़्म’ की
बात करेंगी,
किन्तु अधिकांश महिलाएं
पिता और पति के नाम/उपनाम
चस्पाए रखेंगी !
कहने पर कहेंगी-
ये पुरुष नारीविरोधी है,
इसे पीटो-कुटो
और समाज से दूर करो !
ये सामाजिक प्राणी नहीं है !
5.
रावण
दिल में यही बात
इधर भी है, उधर भी !
मोहब्बत में क्या खरोंचे ?
पौधे को ज्यों सींचे !
पर्दा गिरता है,
पर अपनों से क्या पर्दा ?
पटाक्षेप के बाद का जीवन
या रा-वन
क्यों है न जीवन ?
6.
औकात
सत्ता के 6 वर्ष !
अन्य देशों को
मदद की गई,
यह तो अच्छी बात है !
किन्तु मदद
अपनी औकात देखकर ही होनी चाहिए !
चादर देखकर ही होनी चाहिए !
न कि अपने देश के नागरिक
भूखा सोये
और इलाज के लिए तड़पे !
देश की स्थिति अब भी नाजुक है, सर !
लेकिन 17.7 का संबोधन अद्भुत था !