हमारे अटल जी
अटल जी ऐसे प्रथम शख्स है, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिए । उन्हें अपने हिन्दू, हिंदी, हिन्दुस्तान, हिन्द महासागर और जय हिन्द पर गर्व है । विपक्षी सरकार में सर्वोच्च सांसद का पुरस्कार पाया । उनके अविवाहित रहना भी स्वयं में भी काफी त्याग है । तीन बार भारत के प्रधानमन्त्री, चाहते तो अन्य की तरह स्वयं को भी ‘भारत रत्न’ से नवाज़ सकते थे, किन्तु विपक्षी सरकार द्वारा ही उन्हें ‘पद्म विभूषण’ मिला था और ‘भारत रत्न’ भी उस प्रधानमन्त्री के अग्रसारण पर मिला, जिनसे कुछ ‘थीम’ लिए वैचारिक-मतभेद हो चुका था, किन्तु दोनों माननीयों ने इसे कभी मनभेद नहीं बनाया । ‘भारत रत्न’ प्राप्ति पर उन्हें पहला शुभकामना-पत्र मेरा ही प्रेषित हुआ था, क्योंकि वाजपेयी जी के निज सचिव ने मुझे जवाब जनवरी-2015 के प्रथम सप्ताह ही प्रेषित किया है। मध्य प्रदेश के ग्वालियर ‘सिंधिया’ घराने के कारण जाने जाते हैं, इसी ग्वालियर जनपद में कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी के यहाँ 1924 में अटल बिहारी का जन्म हुआ था । हालांकि सरकारी नामांकन पंजी में जन्म वर्ष 1926 लिखा है, किन्तु वाजपेयी जी 1924 को ही सही मानते हैं । इसी 1924 के 24 दिसंबर को अमृतसर में मोहम्मद रफ़ी का भी जन्म हुआ हुआ था । साहित्यिक छवि दोनों में, क्या संयोग है ? कहा जाता है, अटल जी के ‘बिहारी’ नाम में उनके अनुसार बिहार से जुड़ाव हो सकता है । बिहार के चंपारण क्षेत्र में ‘वाजपेय’ ब्राह्मण है भी । यद्यपि महाकवि निराला भी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे भी । लगता है, ऐसे कुल में सरस्वती बसती होंगी ! कई पुस्तकों के कवि-लेखक भारत रत्न श्रीमान् अटल बिहारी वाजपेयी की महत्वपूर्ण कविता-पुस्तक ”मेरी इक्यावन कविताएँ” हैं । कविता ‘मेरे प्रभु, मुझे उतनी ऊँचाई कभी मत देना’, ‘हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूँगा’ और ‘भारत–शंकर-शंकर, कंकड़-कंकड़’ प्रसिद्धि लिए हैं। कविता ‘मेरे प्रभु….’ पत्रिका ‘भागीरथी’ में भी छपी थी, तब 1992 में मेरी कविता ‘जननी की पुकार’ भी उसी अंक में अटल जी के साथ लगी थी । वाजपेयी जी गाहे-बगाहे अपने गुरु कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘क्या हार में, क्या जीत में; किंचित् नहीं भयभीत मैं’ गुनगुनाया करते थे।