कविता

ताज के सामने

ताज …..के सामने ,
छाते में ,
दुकान सजाए बैठा है।

वह एक आम आदमी है।
हर किसी के ,
सपने को खास बनाए बैठा है।

ताज के सामने ,
छाते में दुकान से सजाए बैठा है।

तस्वीरें बनाता है ।
ताज के साथ सबकी,
वह सब की,
एक खूबसूरत,
यादगार सजाए बैठा है।

वाह री !!! कुदरत
जिंदगी की हकीकत….???

मौत ..कब्र में सोई है ।
जिंदगी… छाते के नीचे ,
अपनी दिहाड़ी के लिए रोई है।

— प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- [email protected]