40 साल सरकारी नौकरी और लगभग प्रतिदिन 15-20 किलोमीटर साईकिलिंग करने के बाद वे आज सेवानिवृत्त होकर जिन्दगी के एक अहम मोड पर है। अक्सर मैं सोचा करता था कि दादा इतना सोते क्यों है। दिन में दो बार नहाते क्यों है। दिनभर सोना उनकी फितरत बन गई थी। मैं ही नहीं पूरा परिवार भी इस बात से परेशान कि ऐसा क्यों? एक उम्र के बाद चिड़चिड़ाहट होना स्वाभाविक है। बार-बार उनका यह कहना कि मेरा घर है, मैंने इसे बनाया हैं। मैं यहीं खाना खाऊगा, यहीं सोऊगा। तुम्हें जो करना हैं कर लो और कई अपशब्दों की भरमार सुनकर अच्छा नहीं लगता था। जरूर कोई ना कोई तो परेशानी हैं। हमारी परेशानी तो अपनी जगह हैं-खासकर अपमान सहने की।
सुबह नहाने के बाद एक-दो मन्दिरों के दर्शन कर आना उनकी आदत में शुमार था। एक दिन दादा के बारे में पास में ही रहने वाली दीदी ने कहा-‘तुम्हारे दादा एक दिन मुझसे पता पूछ रहे थे।‘ मैंने कहा-‘क्यों?‘ उसने कहा-‘अरे, घर भूल गए होंगे।‘ मुझे विश्वास नहीं हुआ। मैंने दादा से पूछा- ‘आप घर भूल गए थे क्या?‘ दादा ने दृढ़ता और गुस्से में आकर कहा- ‘मुझसे फालतू बात मत कर।‘ मैंने संयम रखकर एक बार फिर पूरे आदरभाव के साथ कहा- ‘यदि ऐसा हो रहा हो तो आप मंदिर मत जाया कीजिये, जूही को साथ ले जाया कीजिये।‘ उन्हें मेरी बात पर और गुस्सा आया बोले- ‘तू ज्यादा समझदार हैं क्या?‘ इस पर मुझे भी परिवार वालों ने चुप रहने का इशारा किया।
एक दिन मैं किसी काम से बाहर जाने हेतु निकला। माँ से पूछा-‘दादा मंदिर से आये क्या?‘ माँ बोली-‘नहीं, अभी नहीं आये, आ जाएंगे।‘ कॉलोनी से थोड़ा बाहर निकला ही था कि मुझे दादा दूसरी ही दिशा में जाते हुए नजर आये। मैं दौड़कर उनके पीछे गया और बोला- ‘कहाँ जा रहे हैं।‘ बहुत ही नम्रता के साथ उन्होंने जवाब दिया- ‘मैं घर जा रहा हूँ।‘ मैंने उन्हें कहा-‘दादा, अपना घर इधर है।‘ तब मुझे समझ आया कि दादा अब भूलने लगे हैं। उनकी मेमोरी लॉस होने लगी हैं। अब समझ में आया कि वे दो बार क्यों नहा रहे थे। उन्हें लगता था कि वे उठते हैं तो सुबह हो गई है। इस वाकये के बाद लगा कि परेशान हम ही नहीं वे भी हो रहे हैं। इसके बाद हम सभी ने अपने व्यवहार में भी बदलाव किया और अतिरिक्त ध्यान रखना प्रारंभ किया।
— संजय एम. तराणेकर