कहानी

नज़रिया

“नमिता, तुम बार-बार उन लोगों के पास क्यों चली जाती हो? क्या बात करती रहती हो उनसे। देखो, मैंने पहले भी तुमसे कहा है कि वह लोग हमारे स्तर के नहीं है। उनका रहन-सहन देखो। गंदगी देखो। अपने घर में बैठो या फिर पड़ोस में और भी लोग हैं, उन से मेलजोल रखकर समय बिता सकती हो।”
“रोहन, हमारी यही सोच है जो महल और झोपड़ी में फर्क करती है। वे भी हमारी तरह इंसान हैं, गरीब हैं और अशिक्षित हैं तो इसमें उनका कोई कसूर नहीं।”

नमिता अभी नयी नयी शादी होकर कॉलोनी के उस महलनुमा घर मे आई थी। पाॅश कॉलोनी थी, सभी संभ्रांत लोग। कॉलोनी भी नई नई बसी थी। पहले वहां पर खेती हुआ करती थी। नमिता के घर के ठीक सामने अभी भी कुछ प्लॉट खाली पड़े थे। जहां पर कुछ गाय और बकरियां बंधी रहती थी। वहीं पास में एक झोपड़ी थी जिसने एक खेतिहर परिवार रहता था जो कई वर्षों पहले अपने गांव को छोड़कर रोजी की तलाश में वहां आ गया था। नमिता का मन उनके लिए बहुत दुखी होता था। वह अक्सर रोहन की अनुपस्थिति में उन्हें किसी तरह मदद करती। परिवार की स्त्रियों का दर्द बांटती, महिलाओं को व्यक्तिगत स्वच्छता के बारे में जागरूक करती और परिवार कल्याण हेतु सरकार की योजनाओं और अस्पताल में मिलने वाली सुविधाओं के बारे में भी बताती थी। पांच-छ वर्ष बीत गए मगर खुद रोहन और नमिता को कोई संतान नहीं हुई। कई तरह के इलाज कराए।अंत में पता चला कि कमी रोहन में है और वह पिता नहीं बन सकता। रिश्तेदारी में दूर-दूर तक ऐसा कोई नहीं था जो कि अपना बच्चा उन्हें गोद दे सके। आईवीएफ भी फेल हो चुका था और सेरोगेसी में भी कई तरह की अड़चनें थीं। तब परिवार की सलाह पर दोनों ने बच्चा गोद लेने की ठानी।

उधर झोपड़ी में पांचवी लड़की हुई। तीन लड़कियां और एक लड़का पहले से ही थे। नमिता ने उसे गोद लेने की इच्छा जाहिर की। परिवार वाले राजी ना थे। भला झोपड़ी में पैदा हुई एक लड़की महल में कैसे आ सकती थी। पर नमिता ने ठान ली थी कि वह इस बच्ची को गोद लेगी। उसकी तड़फ देखकर रोहन भी आखिरकार इस बात के लिए तैयार ही हो गया।
बच्ची के माता-पिता की सहमति से और कानूनी कार्यवाही पूर्ण करने के बाद वह बच्ची को घर ले आई। उसे नहलाया, धुलाया, साफ कपड़े पहनाए। डॉक्टर के पास ले गई। बच्ची पूर्णता स्वस्थ थी। अच्छा खानपान और अच्छी परवरिश की वजह से बच्ची दिन प्रतिदिन ह्र्ष्ट-पुष्ट होती जा रही थी। झोपड़ी में रहने वाले चार बच्चों के मन में किसी तरह की हीन भावना ना आए, इस वजह से नमिता के कहने पर रोहन ने पहले ही दूसरे शहर में ट्रांसफर करवा लिया था।

नमिता से बोली,” रोहन, महल और झोपड़ी वाली सोच सिर्फ हमारी मानसिकता है। ईश्वर ने तो सबको समान बनाया है। हम सभी का उद्भव कहीं ना कहीं गांव से ही हुआ है और गांव में हमेशा कच्चे मकान और झोपड़े ही होते हैं। हमें कोशिश करनी चाहिए कि सबको समान अवसर मिले। यह प्रवृत्ति लोकतंत्र और समाजवाद के लिए अत्यंत घातक है। जब तक सबको समान अवसर नहीं मिलेगा तो देश का विकास कैसे होगा….?
अब तक रोहन भी इस बात को समझ चुका था। तभी तो गोद में अपनी राजकुमारी को लेकर चुपचाप नमिता की बात सुन रहा था बिना किसी प्रतिरोध के।

— अमृता पांडे

अमृता पान्डे

मैं हल्द्वानी, नैनीताल ,उत्तराखंड की निवासी हूं। 20 वर्षों तक शिक्षण कार्य करने के उपरांत अब लेखन कार्य कर रही हूं।