कविता

चाहत-ए-हरियाली

शहरों में जीने की ठान ली मैंने हां, गमलों में हरियाली पाल ली मैंने, गमले में बलखाती लता गिलोय की गमले में इठलाती कली अनार की…. गमले में पुदीना और बेल पान की तुलसी का पौधा संग छोटा सा देवस्थान भी…. कहीं गुलाब की सुगंध, कहीं खिलती अश्वगंध कहीं कद्दू करेला तो कहीं फूलों का […]

पर्यावरण

एक कदम पर्यावरण की ओर

सूनापान महसूस नहीं करती मैं मैंने आंगन में खुशियां पाली हैं, कुछ महकते फूल पौधे लगाए हैं कुछ चहकते घोंसले सहेजे हैं। जी हां, ये मेरा व्यक्तिगत अनुभव है। वैसे भी हरी-भरी धरा, लहलाते खेत, पेड़ पौधे किसके मन को नहीं भाते…? बसंत ऋतु में पीत परिधान पहने सरसों के खेत, बुरांश, फ्योंली और वृक्ष […]

लघुकथा

संवेदना की मौत

किसी फेसबुक समूह में उसने देखा कि टैंकर और स्कूटी की टक्कर में स्कूटी सवार महिला बुरी तरह से घायल हो गई थी और उसकी गुलाबी रंग स्कूटी चकनाचूर हो गई थी। स्वयं उसकी पत्नी एचडीएफसी बैंक में कार्यरत थी और उसी रास्ते गुलाबी रंग की स्कूटी से आया जाया करती थी। एक पल के […]

बाल कविता

बच्चों से बतियां

बाहर कोरोना की मार बच्चों रहना होशियार वायरस है यह एक नन्हा सा मगर करे छुप-छुपकर वार…… बार-बार हाथ तुम धोना दूर रहेगा जिद्दी कोरोना बिना काम बाहर मत जाना कोई चीज भीतर ना लाना…… स्कूल बंद है पार्क बंद रहना अनुशासन के पाबंद चीजों में चिपक कर यह आता बाहर के खाने को कर […]

लघुकथा

रोऊं या मुस्कुराऊं…

आज सुबह से ही सोशल मीडिया पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बधाई संदेश आ रहे थे। रीना ने जब दिन में मोबाइल उठाकर देखा तो ढेर सारे ऐसे सुखद संदेश उसे भी प्राप्त हुए थे। मुश्किल से तीन महीने ही हो पाए थे उसके विवाह को। सुखद भावी जीवन के अनेकों सपने सजाए उसने इस […]

कविता

परिवर्तन

‌ यह बसंत…… कुछ अलग है ना उस बसंत से। जब डोलते थे पात से हम, झूमकर अनंत में सागर की गहराई, आकाश की ऊंचाई मानो हम ही हम थे… पीला अंबर, पीत पताका पकड़े आंचल स्वर्णलता का पाने को  जग सारा आतुर कितने अनजाने से हम थे. ‌‌……. स्वर्णभूमि सी सजी धरा थी चिंता […]

कविता

आहट नये साल की

हौले हौले मद्धम पग भर आ रहा है नया साल दिल के भीतर सुलग रहे हैं फिर कुछ अनुत्तरित सवाल अब कैसे रोली चंदन हो, कैसे इसका अभिनंदन हो…. यह साल जो बीता, हलकान कर गया जीते जी कईयों को बेजान कर गया। वर्षों की परंपरा पीछे छूट रही है खौफ के साए में जिंदगी […]

कविता

बदलाव

छंट जाने दो कुहासा बीत जाने दो निराशा कि नया साल आया है….. सपनों के उड़नखटोले को उमंगों के पंख लगा कर उड़ जाने दो कि नया साल आया है….. रीते रहे हैं कई गागर, प्यासे रहे हैं कई सागर नैनो के नीर वह जाने दो, कि सूख ना पाए सागर, दिल का बोझ कम […]

कविता

वार्तालाप सत्तर के आस-पास

कितनी जिद्दी हो चले हो तुम आजकल मेरी तो कोई बात नहीं मानते, सुबह सवेरे ये सारे खिड़की दरवाजे खोल देते हो ठंडी हवा से दुश्मनी बेकार में मोल लेते हो, बीमार पड़ गए तो कौन करेगा तुम्हारी देखरेख बेटे बहू को भी दो-तीन दिन में वापस जाना है परदेस, लाठी के बिना दो कदम […]

कविता

काश….!

  गुलाबी ठंड का एहसास कराता अक्टूबर का माह आ गया है, मैं खुश हूं….. सूरज के रुख में थोड़ी नरमी है अब कम हो गयी गर्मी है, मैं खुश हूं…. प्रकृति में खिलने वाले फूलों ने अपनी छटा बिखेरने शुरू कर दी है, प्रकृति का मधुमास, खिले खिले एहसास कम हो गया बरसना ए […]