सामाजिक

अबला नहीं, सबला है नारी

नारी अपनी रक्षा करने में खुद समर्थ है । रक्षा-बंधन या रक्षाबंधन ! बहनों की सुरक्षा के लिए उनकी ही द्वारा भाइयों की कलाई पर बाँधी गई धागा को रक्षा-कवच माने जाने की परिपाटी सदियों से चली आ रही है, यह फ़ख़्त परंपरा है, जो अकाट्य नहीं है!

हम नारी को अबला-अबला कहते-कहते उन्हें कमजोर आँक रहे हैं और कायर बना रहे हैं! हम उन्हें कहीं आने-जाने की आज़ादी नहीं देते, उच्च शिक्षित नहीं कराते! मैंने ऐसे सम्पन्न और सवर्ण परिवार को भी देखा है, जो अक्सर प्रगतिशीलता की बात करते हैं, किन्तु अपने घर की बच्चियों को मैट्रिक के बाद उच्च शिक्षा के लिए बाहर नहीं भेजते! भेजते भी हैं तो उनपर निगरानी रखते हैं! अगर वे सहकर्मी से प्रेमवश शादी की योजना बनाते हैं तो sc, st व backward classes के लड़के को दामाद नहीं बनाएंगे, चाहे वह अपनी बेटी का ही राम-नाम सत न कर डालें! यानी ऑनर किलिंग!

इधर bpsc ने पदाधिकारी बनने हेतु रिज़ल्ट जारी किया है, जिनमें कई महिलाओं के नाम भी हैं, किन्तु उनमें प्रायः शादीशुदा हैं ! …..फिर इसे आप गर्व से कैसे कह सकते हैं, वे आपकी बेटियाँ हैं, जिस दिन आपने उनकी कन्यादान कर दिए, उसी दिन से वे आपकी बेटी कहाँ रही? उन बहनों ने, जिनकी रिजल्ट आयी, वह तो किसी की पत्नी ठहरी या किसी की बहू ! लेकिन बेटी कदापि नहीं! क्योंकि उनको भार जान या अबला जान या किसी लोकलाज के भयवश अपनी हैसियत से ज्यादा हैसियतवाले के यहाँ शादी करा देते हैं और कथित सामाजिक प्रतिष्ठा को जोगे रखने के लिए खुद कंगाल हो जाते हैं!

मेरे माता-पिता ने न केवल अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा प्रदान किए, अपितु वे आज अविवाहिता रह कई उपलब्धियों से लेश हो गई हैं, अपने रिकॉर्डेड उपलब्धियों के कारण वे अपना नाम Limca Book of Records में भी दर्ज़ करा चुकी हैं ! माता-पिता सहित मेरे परिवार के सभी छह सदस्य Limca Book of Records होल्डर सहित उनके नाम कई records book में भी हैं ! मैं Guinness World Records होल्डर भी हूँ और बहनों की आयु 40+ है, बावजूद हमें अपनी goal से कोई डिगा नहीं सका है। मेरी बहन केंद्रीय सूचना आयोग में केस दायर करनेवाली पहली महिला है, तो विदेश मंत्रालय से पुरस्कार पानेवाली पहली बिहारी !

मैंने पिछले कई वर्षों से बहनों, माँ, अपने रक्तसम्बन्ध से इतर महिलाओं, पेड़-पौधों इत्यादि को ही राखी बाँधी है ! मेरी माँ भी पिताजी को राखी बाँधती है, तो पिताजी भी माँ सहित हम सबको! मेरी बहनें अबला नहीं हैं, सबला हैं! वे अपनी रक्षा करना जानती हैं! मैं (पुरुष) उनकी रक्षा क्या कर पाऊंगा ? वे तो हमारी रक्षा के लिए ‘ढाल’ बन जाती हैं…. मैं उनकी कृत्यकारक के प्रति नतमस्तक हूँ…. मैं उन्हें कुछ भी नहीं दे सकता ! मैंने तो उनसे अभीतक पाया ही है। भारतरत्न अटलजी की दत्तक दुहिता ने ही उनके  अग्निसंस्कार की, तो माननीया सुषमा स्वराज को उनकी बेटी बाँसुरी ने । हाँ, यही तो बेटियों का सबल पक्ष है । कम पढ़ी-लिखी बेटी को कम उम्र में अपना सर्वस्व अर्पितकर बड़े घर में बेटियों के सौंपने के दुष्परिणाम भी है।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.