अनमोल चाबी
आज उसने एक चित्र देखा. चित्र बहुत सामान्य-सा था. महज एक चाबियों का गुच्छा, जिसमें हर तरह की चाबियां थीं. छोटी-बड़ी, मोटी-पतली, नई-पुरानी, चमकदार और जंग खाई भी. यह चाबियों का गुच्छा है या समस्याओं का पुलिंदा! उसने सोचा.
‘समस्याएं, समस्याएं, समस्याएं! चारों ओर समस्याएं!!” वह बहुत परेशान-सा लग रहा था.
”क्या इन समस्याओं का कोई हल नहीं है?” उसने खुद से पूछा.
”समस्याओं से दो-चार होना तो उसका पैदाइशी शौक है! 1947 में भारत-विभाजन के समय उसके परिवार को सुरक्षित निकल आने का मौका मिला था. तब भी उसके परिवार ने मौके पर चौका लगा लिया था. अपने साथ और चार परिवारों को सुरक्षित निकाल लाया था.” अपने परिवार पर वह गर्वित था.
”1962 में भारत-चीन के युद्ध के समय उसके परिवार ने देश की रक्षा हेतु हंसते हुए कुर्बानियां दी थीं.” उसने खुद को हिम्मत बंधाई.
”1984 में दिल्ली के दंगों में उसने एक ही दिन में अपने घर से 250 लोगों को मुफ्त टेलीफोन करने दिया था, ताकि वे अपने परिवारीजन की खैरियत जान सकें.” ऐसे समय बेखौफ होकर सहायता करने का यह साहस प्रभु की कृपा थी, उसने सोचा.
”कुछ साल पहले जब लोकसभा सदन में कुर्सियां उछाली गई थीं, अध्यापक होने की हैसियत से उसने अपने स्कूल में शांतिपूर्ण मॉक पार्लियामेंट का ऐसा शानदार प्रदर्शन किया था, कि बड़े-बड़े नेताओं ने उसे देखकर उस अनूठी मॉक पार्लियामेंट की दिल खोलकर तारीफ की थी.” उसने उस तनावपूर्ण माहौल में अपने मूक सहयोग को याद किया.
”और-तो-और हालिया कोरोना संकट में लॉकडाउन के समय जब बड़े-बड़े धन्ना सेठ खुद को कंगला बताकर मुफ्त सहायता पाने की गुहार कर रहे थे, तब भीलवाड़ा में निःशुल्क खाद्य सामग्री वितरण करने गए एक समाजसेवी संगठन के लोगों के सामने गाड़िया लोहार बस्ती के लोगों ने अनूठी मिसाल पेश की. बस्ती में लोगों ने फ्री राशन लेने से इनकार कर दिया और खुद को गरीब बताते हुए भी इस मुश्किल घड़ी में जरुरतमंदों की मदद के लिए 51000 रुपए इकट्ठा कर संगठन को सौंपे. इस मिसाल से प्रेरित होकर उसने भी अपना गिलहरी योगदान प्रदान कर संतोष प्राप्त किया था. आज महज चाबियों के गुच्छे के एक चित्र को वह समस्याओं का पुलिंदा मानकर परेशान हो रहा था!” उसे हैरानी हुई.
तभी रेडियो पर उसने जीवन को जीने की अप्रतिम युक्ति बताता हुआ एक अनमोल वचन सुना-
”समस्याएं इतनी ताकतवर नहीं हो सकतीं,
जितना हम उन्हें मान लेते हैं,
ऐसा कभी नहीं हुआ,
कि अंधेरों ने सुबह ही न होने दी हो,
चाहे कितनी भी काली रात हो,
उसके बाद सुबह तो होनी ही है.”
समस्याओं को पीछे धकेलकर विश्वास के साथ वह सुबह की नई रोशनी की प्रतीक्षा करने में मस्त-व्यस्त हो गया. जीवन जीने की अनमोल चाबी उसे मिल गई थी.
13 सितंबर, 2020
(विश्व सकारात्मक सोच दिवस पर विशेष)
लघुकथा मंच पर इस लघुकथा पर गुरमैल भाई की त्वरित प्रतिक्रिया-
”excellent story . all sorts of people are there, misers and broad minders irrespective of theirs holdings But to help others in difficult times should be the motto of life, only then the public could be problem free ! not many keys would be needed then !”
प्रिय गुरमैल भाई जी, हर बार लघुकथा मंच पर लघुकथा पर आपकी त्वरित प्रतिक्रिया हमारा संबल बनती है- बहुत-बहुत शुक्रिया और धन्यवाद.
वाकई….
समय और सफलता आपके सेवक हैं, स्वामी नहीं !
प्रिय सदानंद भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. समय और सफलता आपके सेवक हैं, स्वामी नहीं !
”लगातार हो रही असफलताओं से निराश नहीं होना चाहिए,
क्योंक़ि कभी–कभी गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल देती है।” वह अनमोल चाबी एक सुविचार भी हो सकता है, जो नई रोशनी दिखाकर मन के अंतर्द्वंद्व को समाप्त क जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार कर देता है.