कविता

लिखना छोड़ दिया

 

सपनो को बुनना छोड़ दिया।
हाँ मैंने अब लिखना छोड़ दिया।।

हर तरफ अब झूठ की मंडी लगी है।
मैंने अब सच को दिखाना छोड़ दिया।।

आस्तीन के साँपो से आज खुश है सभी,
मैंने लोगो को उन्हें दिखाना छोड़ दिया।

जब गिरगिट सा रंग बदलना भाता सबको,
मैंने तब दुनिया से मिलना छोड़ दिया।

मदिरापान करके लोग आजकल करते जगराता।
मैंने अब जगरातो में भी जाना छोड़ दिया।।

चेहरे पर आँशुओ की लकीरो पर हँसते लोग जब,
मैंने अब उन्हें अपने दुखों को दिखाना छोड़ दिया।

आजकल गिद्धों – बाजो से भरा है आसमान,
सुंदर मैना ने आकाश में जाना ही छोड़ दिया।

अपने लिखे शब्दो का अर्थ ही व्यर्थ हो गया।
तब थककर मैंने लिखना ही छोड़ दिया।।

 

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- [email protected] एवं [email protected] ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)