एक कप ‘चा’ !
पूजा तो पूजा होती है, फिर गरीब भारत में ‘पंडाल’ पर करोड़ों खर्च क्यों? वह भी कुछ दिनों के बाद फिर उजाड़! जबकि एक साल के उन चंदों से वहाँ स्थायी तौर पर मन्दिर और छत हो जाते! करोड़ों रुपये के क्षणभंगुर ‘पंडाल’ को लेकर कोई इसे सुस्पष्ट करेंगे!
लेखक श्री राजीव कुमार भारद्वाज लिखते हैं- माननीय सुप्रीम कोर्ट को इन तथ्यों पर संज्ञान लेना चाहिए कि कैसे सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों एवं अन्य प्रकार के जनप्रतिनिधियों की कमाई व संपत्तियां सिर्फ एक कार्यकाल व 5 वर्षों में 80% तक बढ़ जाती है, जबकि वेतन व भत्ते उनकी कमाई व आय के स्रोत नहीं है, यह सिर्फ जीविकोपार्जन हेतु है! यह सवाल कोई विपक्षी पार्टी भी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वह भी तो जनता के पैसों के लूट में शामिल हैं। बारी-बारी से दोनों ही लूटा करेंगे! अन्यथा, जनता की नियति ‘विडम्बना’ बनी रहेगी!
अवकाश में हूँ ! मजदूरी निकालने हेतु अपने मालिक का कुछ कार्य किया ! ईंट ढोया, मजदूरी में एक कप ‘चा’ और एक ठो ‘लाइफबॉय’ साबुन मिला ! भैया, कुछ देर पहले ही ईंट ढोने कार्य से फ़ारिग हुआ हूँ!