तस्वीर/छवि
एक दिन फुर्सत में बैठकर मैंने,
अपने दिल की गैलरी को खोला।
मैं देखना चाहता था,
कि आखिर किस-किस की तस्वीरें
छुपी है मेरे दिल में।
मेरे दिल में कुछ तस्वीरें,
छपी थी बहुत ही प्यारी।
एक तस्वीर थी मेरे प्यार की
तो एक थी मेरे यारों की।
एक तस्वीर थी,
मेरे अभिभावकों की।
तो एक तस्वीर थी,
मेरे गुरूजनों की।
एक सुन्दर छवि मेरे अन्दर,
बसी थी भगवान की।
एक तस्वीर थी सीमा पर खड़े,
मेरे देश के जवान की।
मैंने सभी तस्वीरों को
साफ करके देखा,
सब में मैंने कुछ खास देखा।
पहली तस्वीर…….
आपकी तस्वीरों को मैं,
अपने सीने से लगाकर रखूं।
बनाकर आपकी तस्वीर मैं,
हमेशा अपने पास रखकर,
हर जगह मैं छवि आपकी
हर पल निहारता रहूँ।
(मेरे अभिभावक मेरे माँ-बाप)
दूसरी तस्वीर…….
मैं जिनको हमेशा पूजता हूँ,
सम्मान जिनका करता हूँ।
माता-पिता और गुरु-देवता,
इनकी तस्वीरों को मैं,
खुद के अन्दर ही सजाकर रखूं।
(मेरे आदर्श मेरे गुरू)
तीसरी तस्वीर……
सुन्दर सी छवि उस ईश्वर की,
मेरे मन को भा गई।
भक्ति में तेरी खोकर है प्रभु,
मैं अनायास से नतमस्तक होकर
तेरी युँ तस्वीर बनादूँ। (ईश्वर और भगवान)
चौथी तस्वीर……
एक तस्वीर मुझे,
दूर खड़ी नजर आयी।
अपनी हाथ में थी जिसने
देश की रक्षा के लिए,
एक भारी बन्दूक थी थमायी।
(जवान)
पांचवी तस्वीर……..
हर पल मैंने किसी को,
अपनी हर तस्वीर में साथ पाया।
मेरे साथ रहता था जो,
जिसने मेरा हर कदम पर साथ निभाना।
एक ऐसी भी तस्वीर थी,
छपी मेरे इस दिल में।
मैंने इस तस्वीर में,
अपने साथी अपने को यार पाया।
(मेरा दोस्त मेरा यार)
छठी तस्वीर……….
कुछ तो खास देखा होगा तुझमें,
मेरे इस दिल ने।
युं ही किसी की तस्वीर को
ये मेरा दिल,
अपने अंदर नहीं उतारता।
(प्यार)
तेरी हँसती तस्वीरें मेरे दिल में
युँ उतर गई।
बिन देखे चेहरा तेरा,
तेरी तस्वीर बना दुँ मैं।
(प्यार)
न जाने कब तुम,
मेरे ख्वाबों में कब बस गई।
हरदम तेरी प्यारी छवि
मेरे दिल में कब छप गई।
(प्यार)
— आदेश सिंह राणा