डिजिटल सांझा विवाह
समीरा के लैपटॉप पर वॉट्सऐप लगा हुआ था और स्क्रीन पर नीचे उसका आइकन भी बना हुआ था. जैसे ही वॉट्सऐप पर कोई मैसेज आता, समीरा को पता चल जाता था. दो दिन पहले अचानक आइकन निष्क्रिय हो गया था और वॉट्सऐप ने काम करना बंद कर दिया. समीरा का काम तो मोबाइल से चल ही रहा था, वह निश्चिंत थी. अचानक आज फिर वॉट्सऐप का आइकन सक्रिय हो गया था. इस सक्रियता ने समीरा को मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह की याद दिला दी, जब कोरोना के कारण पहली बार लॉकडाउन लगा था.
लॉकडाउन लगते ही अपनी सोसाइटी तक में मिलने-मिलाने के सभी रास्ते निष्क्रिय हो गए थे, आनन-फानन सोसाइटी का वॉट्सऐप ग्रुप बनकर सक्रिय हो गया और बतियाने, विचार विमर्श करने और सहायता करने का सिलसिला चल पड़ा.
लॉकडाउन था तो क्या हुआ, शुक्ला जी की बेटी के विवाह का मुहूर्त निकला हुआ था, अपनी सीमित परिधियों और गतिविधियों के अंतर्गत वो तो करना ही था.
सोसाइटी का समुदाय भवन बुक करवाया गया. बुकिंग होते ही शुक्ला जी की अर्धांगिनी को संदेश आने शुरु हो गए-
”भाभी जी, बेटी का विवाह है. बेटियां तो सबकी सांझी होती हैं. लॉकडाउन के कारण आपको कोई कैटरर तो मिलेगा नहीं, शादी से एक दिन पहले और एक दिन बाद तक तीन दिन आप सबके नाश्ते की जिम्मेदारी हमारे ब्लॉक की है, बस आप संख्या बताती जाइएगा.” मिसेज मित्तल ने लिखा.
”ठीक है, लंच की जिम्मेदारी हमारे ब्लॉक की है.” मिसेज गुप्ता ने संदेश को आगे बढ़ाया.
”तीनों दिन डिनर हमारे ब्लॉक से आएगा. आप स्वीट डिश आदि की बिलकुल चिंता मत कीजिएगा. हमारी बेटी का विवाह है, बस काम बताती जाइएगा.” मिसेज आनंद ने लिखा.
”लॉकडाउन के कारण हमारा नौकर यहीं अटक गया है, तीन दिन आपके पास रहकर काम करेगा.” मिसेज कौशल का संदेश था.
”भाभी जी, आप शगुन के लिए अपना लिंक लिख दीजिएगा. हम सभी रस्मों में भी डिजिटली आपके साथ जुड़े रहेंगे.” सोसाइटी के सचिव ने लिखा.
”सांझे विवाह तो हमने बचपन से बहुत देखे हैं, पर ऐसा ”डिजिटल सांझा विवाह” पहली बार देखने को मिला—–” शुक्ला जी की 80 वर्षीय माताजी ने सकुशल विधिवत विवाह समारोह संपन्न होने के बाद आंखों में खुशी के आंसू लिए भावविभोर होकर कहा.
हमने बचपन में सचमुच बहुत-से सांझे विवाह देखे हैं. विवाह से एक महीना पहले पड़ोस की महिलाएं गेहूं-चावल बीनने, पापड़-बड़ियां बनवाने में मदद करती थीं. जिसको जो काम अच्छा आता उसमें सहायता भी करती थीं. कोई स्वेटर बुन देता, कोई सिलाई-कढ़ाई कर देता. मिल-जुलकर सब काम होते थे. बेटियां सबकी सांझी जो होती थीं!