अनिर्णीत जीवन
- क्या जीवन का निर्णय यही है
कि हम खूब ताने सुने
अनसुने वृहद व्यथा के साथ
शिरोमणि अखंडता के रूप में धर
हम यह नहीं कह सकते
कि “हमारी आदत तय है,
हममें नहीं भय है !
विश्वास पदार्पण के
वशीभूत होकर भी
अविराम चलायमान है,
यही तो राग-विराग है
वीतराग संभाग है !”
यानी सबकुछ जीतने होंगे
तभी व्यथित नहीं होंगे !
यह सब तो होंगे !
रात न सिर्फ सजावटी है,
यह तो भयंकर मृत्यु भी है !
क्योंकि रात तो हमेशा
बितानी ही पड़ती है,
चाहे खामोशी से हो
या अंधेरे को चीरकर
सुहानी के अवलंबित हो !