गीतिका/ग़ज़ल

जिंदगी

जीने की एक ही ख्वाहिश थी वो भी जला दी हमने
जब आज हँसके तुम्हारी ‘हां’ में ‘हां’ मिला दी हमने
वैसे तो हम भी तन्हा थे और तुम भी तन्हा मिली थी
पर दोस्ती से प्यार तक जाते जिंदगी  दिला दी हमने
कभी कभी तुम्हे बेबकूफियाँ करके रुलाया तो लगा
हँसानी थी जो जिंदगी प्यार से वो भी रुला दी हमने
तुम्हारे साथ हँसकर, मुस्कुराकर यूँ ही गुजर जाती
वो जिंदगी तुम बिन उदासियों के दर सुला दी हमने
उसकी कुछ बातें मन को मेरे खटक भी गई लेकिन
उससे बेपनाह प्यार में वो सारी बातें भुला दी हमने
अब तो गुमनाम उदासियों में गुजर जायेगी ज़िंदगी
ये सोच अरमानों की मीनारें मिट्टी में मिला दी हमने
अब तो कमरे की चार दीवारी औऱ ये छत है दुनियाँ
उसमें जिंदगी ये अपनी तेरे ख्याबो में सुला दी हमने
तुम कहती हो दो दिन में क्या हो गये हम तुम्हारे लिये
ये तो पता नही पर तुम बिन खुशियां भुला दी हमने
तुम कहती हो उसके यहाँ सब कुछ बेहतर है ऋषभ
तो लगा खुद की जिंदगी उजाड़ तेरी खिला दी हमने
— ऋषभ तोमर
अम्बाह मुरैना

ऋषभ तोमर

अम्बाह मुरैना