कविता
वो मुझसे नहीं
मेरे बदले हुए
किरदार से डरते हैं।
तूफानों का एहसास
उनको आज भी है,
इसीलिए आने वाले
सैलाबो से डरते हैं।
उनको पता है
बिगड़े हुए वक्त की तरह
जब भी बिगड़ा है
किरदार मेरा
तो हर जुड़ा हुआ
ख्वाब भी टूट कर बिखरा है
किसी टूटी तार की तरह।
वो बहते हुए
मेरे अश्कों को देख कर
आज भी घबरते है,
उन्हें मालूम है
जब-जब ये अश्क बहे है
तो सब कुछ बहा कर ले जाते हैं
किसी तूफान की तरह।
— राजीव डोगरा ‘विमल’