वक़्त का पहिया
कुछ यूँ वक़्त का पहिया चलता गया
कोई सूरज उगा, तो कोई ढलता गया
हम उसूलों का दामन थामे हुए चले
यही मिज़ाज दुनिया को खलता गया
न किसी से नफ़रत, न कोई पशेमानी
प्यार ही से मिले, जो भी मिलता गया
रिश्तों में थोड़ी रफ़ू की गुंजाइश रहे
इसलिए मैं अपनी ज़बां सिलता गया
मुक़म्मल न हो सके जो उम्र भर में
इक ऐसा ख़्वाब दिल में पलता गया
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत’